अछूत समस्या (द्वितीय भाग) –
इस समय मालवीय जी जैसे बड़े समाज सुधारक अछूतों के बड़े प्रेमी और ना जाने क्या-क्या पहले एक मेहतर के हाथों गले में हार डलवा लेते हैं लेकिन कपड़ों सहित स्नान के बिना स्वयं को अशुद्ध समझते हैं !क्या खूब या चाल है! सबको प्यार करने वाले भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर बना है लेकिन वहां अछूत जा घुसे तो वह मंदिर अपवित्र हो जाता है, भगवान रुष्ट हो जाते हैं! घर की जब ये स्थिति हो तो बाहर हम बराबरी के नाम पर झगड़ते अच्छे लगते हैं? तब हमारे इस रवैया में कृतघ्नता की भी हद पाई जाती है। जो नवीनतम काम करके हमारे लिए सुविधाओं को उपलब्ध कराते हैं उन्हें ही हम दूरदुराते हैं । पशुओं की हम पूजा करते हैं लेकिन इंसान को पास नहीं बिठा सकते।
आज एक सवाल पर बहुत शोर हो रहा है। उन विचारों पर आजकल विशेष ध्यान दिया जा रहा है। देश में मुक्ति कामना जिस तरह बढ़ रही है ,उसमें संप्रदायिक भावना ने और कोई लाभ पहुंचाया हो अथवा नहीं लेकिन एक लाभ जरूर पहुंचाया है। अधिक अधिकारों की मांग के लिए अपनी अपनी कौम की संख्या बढ़ाने की चिंता सबको हुई। मुस्लिमों ने जरा ज्यादा जोर दिया। उन्होंने अछूतों को मुसलमान बना कर अपने बराबर अधिकार देने शुरू कर दिए। इससे हिंदुओं के अहम को चोट पहुंची।स्पर्धा बढ़ीं, फसाद भी हुए । धीरे-धीरे सिखों ने भी सोचा कि हम पीछे ना रह जाए। उन्होंने भी अमृत छकाना आरंभ कर दिया। हिंदू – सिखों के बीच अछूतों के जनेऊ उतारने या केश कटवाने के सवालों पर झगडे हुए। अब तीनों कामों अछूतों को अपनी -अपनी ओर खींच रही है। इसका बहुत शोर शराबा है उधर इसाई चुपचाप उनका रुतबा बढ़ा रहे हैं ,चलो इन इस सारी हलचल से ही देश के दुर्भाग्य की लानत दूर हो रही है।
इधर जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से इनमें फसाद हो रहे हैं तथा उनमें हर कोई अपनी अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग ही क्यों ना संगठित हो जाए ? इस विचार के अमल में अंग्रेजी सरकार का कोई हाथ हो अथवा ना हो लेकिन इतना अवश्य है कि इस प्रचार में सरकारी मशीनरी का काफी हाथ था । ‘आदि धर्म मंडल’ जैसे संगठन उस विचार के प्रचार का परिणाम है।
अब एक सवाल और उठता है कि इस समस्या का सही निदान क्या हो ?इसका जवाब बड़ा अहम है। सबसे पहले यह निर्णय कर लेना चाहिए कि सब इंसान समान है तथा ना तो कोई जन्म से भिन्न पैदा हुआ और ना ही कार्य विभाजन से। अर्थात क्योंकि एक आदमी गरीब मेहतर के घर पैदा हो गया है, इसलिए जीवन भर मैला ही साफ करेगा और दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का उसे कोई हक नहीं है ,यह बातें फिजूल है। इस तरह हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्याय पूर्ण व्यवहार किया तथा उन्हें नीच कह कर दुत्कार दिया एवं निम्न कोटि के कार्य करवाने लगे। साथ ही यह भी चिंता हुई कि कहीं यह विद्रोह ना कर दें, तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल है। अब क्या हो सकता है ,चुपचाप दिन गुजारो !इस तरह उन्हें धैर्य का उद्देश देकर वे लोग उन्हें लंबे समय तक के लिए शांत करा गए। लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया मानव के भीतर की मानवीयता को समाप्त कर दिया। आत्मविश्वास एवं स्वाबलंबन की संभावनाओं को समाप्त कर दिया। बहुत दमन और अन्याय किया गया। आज उस सब के प्रायश्चित का वक्त है।
इसके साथ एक दूसरी गड़बड़ी हो गई। लोगों के मनों में आवश्यक कार्यों के प्रति घृणा पैदा हो गई। हमने जुलाहे को भी दुत्कारा। आज कपड़ा बुनने वाले भी अछूत समझे जाते हैं। यूपी की तरफ कहार को भी अछूत समझा जाता है। इससे बड़ी गड़बड़ी पैदा हुई। ऐसे में विकास की प्रक्रिया में रुकावटें पैदा हो रही हैं।
इन सब को अपने समक्ष रखते हुए हमें चाहिए कि हम ना उन्हें अछूत कहें और ना ही समझें व समस्या हल हो जाती हैं। नौजवान भारत सभा तथा नौजवान कांग्रेस ने जो ढंग अपनाया है वह काफी अच्छा है। जिन्हें आज तक अछूत कहा जाता रहा उनसे अपने इन पापों के लिए क्षमायाचना करनी चाहिए तथा उन्हें अपने जैसा इंसान समझना चाहिए, बिना अमृत छकाए बिना कलमा पढ़ाएं ,या शुद्धि किये उन्हें अपने में शामिल करके उनके हाथ से पानी पीना यही उचित ढंग है। और आपस में खींचातानी करना और व्यवहार में कोई भी हक ना देना कोई ठीक बात नहीं है।
जब गांव में मजदूर प्रचार शुरू हुआ उस समय किसानों को सरकारी आदमी यह बात समझा कर भडकाते थे कि देखो यह भंगी -चमार को सिर पर चढ़ा रहे हैं, और तुम्हारा काम बंद करवाएंगे। बस किसान इतने में ही भड़क गए। उन्हें याद रहना चाहिए कि उनकी हालत तब तक नहीं सुधर सकती जब तक कि वह इन गरीबों को नीच और कमीन कह कर अपने जूती के नीचे दबाए रखना चाहते हैं। अक्सर कहा जाता है कि वह साफ नहीं रहते। इसका उत्तर साफ है वह गरीब है गरीबी का इलाज करो । ऊँचे – ऊँचे कुलों के गरीब लोग भी कोई कम गंदे नहीं रहते। गंदे काम करने का बहाना भी नहीं चल सकता ,क्योंकि माताएं बच्चों का मैला साफ करने से मेहतर तथा अछूत तो नहीं हो जाती।
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार