तुमनें जो पता दिया था
मैं उसको ही खोजती रही
आ न सकी मैं तेरे पास
न जाने क्या विवशता रही।
कदम कदम पर रोड़े थे
पथ पर मर्यादा की बेड़ी रही।
मैं विवश खड़ी नीम के नीचे
साँझ को रात होते देखती रही।
तुमनें तो भेजे चाँद सितारें
वीथी में भटकती रही।
निकली तो मैं सरिता सी
पर सागर से दूर ही रही।
आ न सकी मै तेरे पास
न जाने क्या विवशता रही….।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा राजस्थान