खास है तेरी उल्फ़त में लिखा आख़िरी ख़त
उस ख़त में तेरी महक अभी भी थोड़ी बाक़ी सी है 🌹
अभी तक गीली है मेरे दिल की जमीं
तेरी उल्फ़त की नमी अभी भी थोड़ी बाक़ी सी है 🌹
कोई भरता नहीं तेरी गली का सूनापन
कई हैं सनम फिर भी तेरी कमी थोड़ी बाकी सी है 🌹
आँसुओं में भीगे ख़त क्यों जलते ही नहीं
स्याही में आँसुओं की मौजूदगी थोड़ी बाक़ी सी है 🌹
मैंने अक्सर देखा है चाँद को तन्हा-तन्हा
तेरे ही इंतज़ार की घड़ी अभी भी थोड़ी बाक़ी सी है 🌹
कैसे खो जाऊँ मैं इस दुनियाँ की भीड़ में
इस टूटे दिल की ख़लिश अभी भी थोड़ी बाक़ी सी है 🌹
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी
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