छा जाये घनघोर अँधियारा
तब आशा का दीपक जलता है
उम्मीद की मध्यम लौ से ये
गहन तम को भी हरता है
घिरता है चहूँ तमस गहरा
जब माहौल अराजक हो जाता है
घिरता अहंकार हर तरफ
अधर्म तांडव मचाता है
बोध का एक नन्हा सा दीपक
एक उम्मीद जगाता है
होगा सब अच्छा भविष्य में
मन में विश्वास जगाता है
आस की ये नन्ही सी किरण
ऐसा चमत्कार दिखाती है
कर्म पथ पर आगे बढ़ने का
मार्ग दीप्त कर जाती है
आशा के इस दीपक से ही
हम नव निर्माण कर पाते हैं
उम्मीद की एक किरण से ही
मायूसी का कुहासा पार कर जाते हैं
सबको अपने भीतर एक
आस का दीप जलाना है
इस उम्मीद के दीप से ही
जीवन रौशन कर जाना है।।
आशा झा सखी
जबलपुर  (मध्यप्रदेश)
दैनिक प्रतियोगिता हेतु
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