आरूषि अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।सभी सुख उसे बचपन से मिले और क्यों न लाड प्यार मिलता शादी के सालों साल बाद जो पैदा हुई थी।वो भी तब जबकि उसके माता-पिता ने संतान की उम्मीद भी खो दी थी।
लेकिन शिक्षा दीक्षा में कोई कभी नहीं रखी।बहुत अच्छे संस्कार दिए थे।बोल ऐसे मीठे कि बरबस अपनी ओर ध्यान खींच ले।केन्द्रीय विद्यालय से पढ़ाई की और यूनिवर्सिटी से ।देखने में बहुत सुन्दर सौम्यता चेहरे पर मुस्कान के साथ आकर्षक लगती।
आरूषि के माता पिता ने उपयुक्त जीवन साथी चुना जो प्रोफेसर था नाम था राज और दिखने में आकर्षक।स्वभाव से शान्त सुलझा हुआ।परिवार में माता पिता और एक छोटी बहन थी।
सभी कुछ अच्छा चल रहा था पर आरूषि को बच्चे की तमन्ना थी पर ईश्वर के आगे विवश।लोग अपनी हरकतों से बाज कहाँ आते?पूछते बच्चे के लिए।जब छोटी ननद के विवाहोपरान्त एक बेटा और एक बेटी हो गये तो नाते रिश्तेदार ताने और छीटाकशी करने लगे।आरूषि और राज परेशान हो गये सभी इलाज करवा लिए,सभी पूजा पाठ ।
जिसने जो बताया सब किया अब दोनो अधेड़ उम्र के पड़ाव में थे उम्मीद खत्म होने लगी निराश हो चुके थे पर….आरूषि की तमन्ना कहीं न कहीं जिन्दा थी।
समय के साथ साथ एक समय वो भी आया जो आशा से परे था आरूषि गर्भवती हुई सभी कुछ ठीक चल रहा था सात माह के करीब एक रात अचानक आरूषि की तबियत बिगड़ी उसको घबराहट होने लगी बीपी लो हो गया और वह अस्पताल पहुँचते पहुँचते बेहोश हो गई।उसे आई सी यू में रखा पर….नहीं बचा पाये परन्तु उसकी कोख में पल रहे बच्चे की जांच की तो पाया उसको ऑक्सीजन नहीं मिल रही।ऑपरेशन की तैयारी कर बच्चे को निकाला पर प्रीमैच्योर बच्ची सीरियस थी आई सी यू में ऑक्सीजन पर रखा गया जहाँ चार दिन बाद उसने दूध पिया।
आरूषि बच्ची को नहीं देख पाई।पर आखिरी शब्द पूरा किया “मै राज की गोद में अपना बच्चा देकर जाऊँगी”
बच्ची का पालन पोषण की कठिन जिम्मेदारी राज पर आ गयी।कैसे निबाहेगा सब।ईश्वर की मर्जी क्या है कोई नहीं जानता।
—अनिता शर्मा झाँसी
—मौलिक रचना