आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर क्या निकला कि ,इसने अपनी मन मानी चाल से कई नस्लों को बर्बाद कर गया …।
जिन्होंने आरक्षण की सौगात देश को दी थी उन्होंने सोचा भी नहीं था कि, ऐसा दिन भी आएगा प्रतिभाएं दमन की राह पकड़ लेगीं ,इन प्रतिभाशालियों युवकों का पलायन अपने ही देश से हो जाएगा ..। उस समय कमजोर ,पिछड़े वर्ग की दशा सोचनीय थी ..। इस बिल को संशोधित कर केवल कुछ समय अवधि के लिए लाया जाना स्वीकार्य किया गया था .. क्योंकि, सामाजवाद दृष्टि कोण से हमारा राष्ट्र समाज वाद का पक्षधर रहा है सभी को बराबरी का अधिकार है ,वर्ण व्यवस्था होने से दलित वर्ग के पास सुअवसर नहीं थे । इसलिए,इस नीति को उनके उत्थान के लिए पेश किया गया था ..।
लेकिन, इतने समयकाल से चल रहा आरक्षण हमारे देश विकास की राह पर आरक्षण ही सबसे बड़ा रोड़ा है ..।
यदि, हम समान नागरिक समान अधिकार की बात करते हैं तो जातियों और धर्म को पूछते क्यों हैं..? कोई स्कूल या प्रतियोगिता का फॉर्म भरते समय जाति और धर्म के नाम का बंटवारा क्यों हो जाता है ..?
क्या यह हमारी शिक्षा की त्रासदी नहीं कि उसे इस दानव से लोहा लेना पड़ता है ..। प्रतिभाशालियों के मध्य में कितना भी ऊंचा पद मिल जाए तो, क्या उस पद की गरिमा को बचा पाएगा ? यह तो असम्भव ही प्रतीत होता है ..।
सुप्रीम कोर्ट ने भी एक नई एडवाइजरी जारी करते हुए कह दिया है कि आरक्षण कितनी पीढ़ियों तक जारी रहेगा ? है कोई जवाब किसी के पास ?
शायद , किसी के पास इसका जवाब नहीं होगा । दलगत राजनीति और समाज के अंदर एक चिंगारी प्रज्वलित होती रहती है ..। राजनीति उसके ऊपर चमकती है और जनता के अंदर वैमनस्य दुर्भाव पैदा होता रहता है,जो दुर्भाग्यपूर्ण ही है ..।
क्या राजनीति से ऊंचे उठकर जनता की भलाई के लिए यह नीति सोची नहीं जा सकती है ..?
हमारे राजनेता यदि अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपने निर्वाचित प्रत्याशियों को भी आरक्षण के लिए आवाज उठाएं तो सही मायने में वो आरक्षण के हिमायती हैं .. अन्यथा जाति गत व्यवस्था बांटने के जिम्मेदार हैं ..।
आरक्षण हो लेकिन, प्रतिभाशालियों का हनन ना हो ..। गरीब , आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए एक मार्ग खुलना ही चाहिए ..। हमारा संविधान लचीला है और उसमें यह बिल दुबारा से सर्वसम्मति से पारित होना चाहिए ..।
आरक्षण के विरोध में कई जाने भी गई हैं और इसके हितैषी ठंडी पड़ गई राख में भी हाथ सेकते हैं ..।
सामान्य वर्ग के छात्रों को यदि, अच्छी तरह खिला पिलाकर हम एक प्रतियोगिता में दौड़ लगवाते हैं तो वह फिर भी फिसड्डी ही निकलता है क्योंकि, आरक्षण का जिन्न उसको अपनी लम्बी -लम्बी बैसाखियों से पहला स्थान निश्चित तौर पर दिलवाएगा ..।
यही सबसे बड़ा कारण है कि आज का युवा हताश होता जा रहा है ,वह निराश होता जा रहा है ..वह दबाव में है ..। किसी भी प्रतियोगिता में जब वह उत्तीर्ण नहीं हो पाता तो वह कुंठा का शिकार हो जाता है ..।
फिलहाल उसे भावी नेताओं से उम्मीद है कि वे उसके भविष्य को एक दिन सुरक्षित करेंगे ..एक आस है और विश्वास भी शायद कभी पूरी हो पाए ..।
सुनंदा असवाल