आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है ,जो राष्ट्रीय पटल पर हमेशा से ज्वलंत मुद्दा रहा।कुछ इसके विरोध में तो कुछ इसके समर्थन में अलग अलग सबकी दलीलें।
शुरुवाती दौर में इसे लागू करना जरूरी था ,वर्ण भेद के कारण निम्न वर्ग के लोग ज्यादातर निरक्षर और पढ़ाई लिखाई से वंचित थे।
समाज को बराबरी में लाना था ,उनके उन्न्यन के लिए उन्हें आर्थिक और शैक्षिक आरक्षण अत्यंत जरूरी था।
लेकिन आज जब देश अपनी आजादी की 75 वी सालगिरह मना रहा है ,तो क्या आरक्षण पर विचार करने की आवश्यकता नहीं?
आज आरक्षण के कारण प्रतिभा का पलायन हो रहा,माता पिता अपने बच्चों को उच्च शिक्षा में दाखिला दिलाने विदेश भेज रहे हैं।
सरकारी नौकरी में आरक्षण के कारण प्रतिभाएं प्राइवेट सेक्टर में जा रही हैं।
अच्छे डॉक्टर विदेशों में सेवा दे रहे हैं। इस मुद्दे पर अपने वोट बैंक बनाने वाले नेता ,सदन में समानता का अधिकार नहीं देते ,वहां दलित, एससी, एसटी की संख्या बहुत कम है।
उपराष्ट्रपति की बेटी आरक्षण का लाभ उठा बड़े पद पर बैठ सकती है ,लेकिन एक आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण को कोई सुविधा नहीं।
फिर भी आज के दौर के युवाओं ने आरक्षण को टक्कर दिया है अपने दिमाग से बुद्धि से।
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संगीता सिंह