चिरकाल से चिकित्सा के क्षेत्र में अनन्य मार्ग देखने में आते रहे हैं जैसे कि-: ऐलोपैथी,आयुर्वेद यूनानी पद्धति, होम्योपैथिक पद्धति तथा।प्राकृतिक।चिकित्सा पद्धति। जिसमे सबसे प्राचीन आयुर्वेद ही माना जाता है। वेदों,पुराणों और प्राचीन ग्रन्थों में इसी की चर्चा मिलती है।जिसमें जड़ी- बूटियों के माध्यम से ही किसी न किसी तरह इलाज किया जाता है।
यहाँ पर हम बहुप्रचिलित आयुर्वेद बनाम ऐलोपैथी पर चर्चा करने जा रहे हैं।
आयुर्वेद किसी बीमारी की उत्पत्ति का पता लगाता है और फिर इसे रोगी से पूरी तरह से समाप्त कर देता है जबकि एलोपैथी रोगी को रोग के कारकों को समाप्त करके तत्काल राहत देता है।
हम सभी जानते हैं जिस चीज़ में जल्दी होती है आगे चलकर वह मुसीबत बनती है।कहा भी गया है जल्दी का काम मुसीबत की जड़ है ठीक इसी तरह एलोपैथी कम समय में इलाज तो कर देती है लेकिन आगे के लिए यह और रोग पैदा कर देती है। जबकि इसके मुकाबले आयुर्वेद बीमारी का इलाज करने में वक़्त तो लेता है लेकिन बीमारी का इलाज परमानेंट कर देता है। भविष्य में फिर किसी भी रोग की आशंका नहीं रह जाती है। आइए अब हम क्रमिक रूप से विषयवार चर्चा करते हैं -:
1- स्थायी इलाज -:
आयुर्वेदिक दवाएं व्यक्ति की बीमारी को स्थायी रूप से ठीक करती हैं और शरीर के सभी बैक्टीरिया को हटा देती हैं। यह एक बेहतर जीवन शैली प्रदान करती है जिसके माध्यम से हम अपने स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। एलोपैथी कुछ बीमारी के कारण शरीर से कीटाणुओं, वायरस को नष्ट कर देगी, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं करती है कि बीमारी स्थायी रूप से ठीक हो जाएगी।
2- साइड इफेक्ट्स -:
आयुर्वेदिक दवाएं प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बनाई जाती हैं जो बिना किसी साइड इफेक्ट के प्राकृतिक तरीके से इस बीमारी का इलाज करती हैं। ये दवाएं कुछ फलों, सब्जियों, मसालों के अर्क से बनाई जाती हैं और इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। एलोपैथिक दवाओं में कुछ दवाएं होती हैं जो हमारे शरीर को प्रभावित कर सकती हैं। ये दवाएं हमारे शरीर के लिए हानिकारक होती हैं और इसका साइड इफेक्ट भी होता है।
3- पुरानी बीमारी को ठीक करने में आयुर्वेद है रामबाण –:
पुरानी बीमारियों को ठीक करने में आयुर्वेदिक दवाएं अधिक प्रभावी हैं। जो बीमारियाँ हमारे लीवर, किडनी, पेट से संबंधित हैं, उनका आयुर्वेदिक दवाओं से पूरा इलाज किया जा सकता है। एलोपैथी बीमारियों जैसे दिल और फेफड़े से संबंधित बीमारियों को जड़ों से ठीक नहीं किया जा सकता है इन्हें केवल दर्द से राहत दी जा सकती है।
4- केमिकल -:
आयुर्वेदिक दवाएं प्राकृतिक अवयवों से बनती हैं और इसमें दवा बनाने के लिए कोई केमिकल शामिल नहीं होता है। दवा बनाने का एक उचित प्राकृतिक तरीका होता है। जबकि एलोपैथिक दवाएं प्रयोगशाला में केमिकल को मिलाकर बनाई जाती हैं। दवाओं में ऐसे रसायन शामिल हैं होते हैं जो हमारे रोग को ठीक कर सकते हैं लेकिन हमारे शरीर में कई अन्य समस्याओं को पैदा कर देते हैं।
5- पेशा या सेवा -:
आयुर्वेद का प्रमुख लक्ष्य लोगों की सेवा करना है। जबकि एलोपैथी एक पेशा बनता जा रहा है। हर कोई बीमारियों का इलाज करके पैसा कमाना चाहता है।
निष्कर्षतः तो यही कहना चाहूँगी कि इस जीवन का अनुभव कहता है कि किसी भी बिमारी का सही डायग्नोस सही समय पर होना बहुत आवश्यक है।
क्रोनिक स्टेज हर पैथी के लिए क्रिटिकल होता है।सबसे अच्छा तो अनवरत गति से स्वास्थ्य के प्रति खान पान, रहन-सहन, उचित व्यायाम और आचार-विचार ही श्रेयस्कर है।
नहीं तो लास्ट मूवमेंट पर तो ऐलोपैथी का ही आश्रय लेना पड़ता है वह भी राम भरोसे।
किसी भी क्षेत्र में चले जाइये अच्छा-बुराई, लाभ-हानि तो मिलनी ही है। देखना यह होता है कि किस समय किसका आश्रय समयानुकूल व परिस्थितिजन्य है।
लेखिका- सुषमा श्रीवास्तव, स्वलिखित रचना, रुद्रपुर, उत्तराखंड।