आयुर्वेद और एलोपैथी की जंग सदियों पुरानी है,लेकिन कोरोना काल ने इस बहस को और बढ़ा दिया था।
लोग एलोपैथी दवा के साथ साथ काढ़ा,इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हल्दी का दूध,गिलोय,और अदरक का खासा सेवन कर रहे थे।
16 वीं शताब्दी से पहले भारत में आयुर्वेद से इलाज होता था।
उस समय वैद्य,आचार्य,हकीम होते थे,जो जड़ी बूटियां पीस कर खिला कर इलाज करते थे।
हमारे वेद में 114 प्रकार की बीमारियों का वर्णन है ,ऋग्वेद,युजुर्वेद,में क्रमशः 67,और 82 प्रकार की औषधियों का भी उल्लेख है,जबकि सामवेद में मंत्रों द्वारा बीमारी का निदान दिलाने का उल्लेख है।
एलोपैथी आधुनिक ,वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति मानी जाती है ,सर्वप्रथम एलोपैथी शब्द का प्रयोग होम्योपैथिक के जनक सर हैनीमैन ने किया था।एलोपैथी एक ग्रीक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ अलोस का अर्थ अदर मतलब दूसरा , पैथो का अर्थ बीमारी ।
होम्योपैथी पर भी एलोपैथी हावी रही।
16वीं सदी में पश्चिम भारत के तटीय रास्ते से जब पुर्तगाली व्यापार के लिए आए ,तो वे अपने साथ डॉक्टर भी लेकर आए।अंग्रेजों के आने के बाद धीरे धीरे एलोपैथी दवाइयों और इलाज का चलन बढ़ा ,इसका कारण महामारी भी थी ।जब भारत में महामारी आई तो फिर एलोपैथी चिकित्सा का जोरों से फली फूली।
आयुर्वेद को अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर जोड़ दिया।
भारत के चरक और सुश्रुत को महान आचार्यों का दर्जा प्राप्त है ।महर्षि चरक कुषाण वंश के राज्यकाल में राज्य वैद्य हुआ करते थे।
सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है।
आज भारत में आयुर्वेद का चलन कम और विदेशों में ज्यादा बढ़ रहा है ,लोग अपनी जीवन शैली को योग के माध्यम से सही करने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं।
आयुर्वेद और एलोपैथ में अंतर की बात करें तो कुछ इस प्रकार है।
आयुर्वेद में बीमारी जानने के लिए कोई यंत्र नहीं है ,वैद्य नाड़ी देखकर कर बीमारी बताते हैं
जबकि
एलोपैथी में कई यंत्र हैं,उसी से जांच कर बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
आयुर्वेद
इलाज लंबा होता है ,लेकिन ये बीमारी को जड़ से खत्म करने का दावा करता है।
जबकि
एलोपैथी
मरीज को होने वाले लक्षण देखकर दवा दी जाती है।
आयुर्वेद
इसके साइड इफेक्ट कम होते हैं ,या ना के बराबर ।
एलोपैथी
लंबे समय तक दवा खाने से साइड इफेक्ट होते ही हैं।
आयुर्वेद
इसमें दवा वजन,उम्र,और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को देख कर दी जाती है ,और कम खर्चीली है।
जबकि
एलोपैथी
इसमें दवाएं महंगी और बच्चों को छोड़ ,वजन उम्र दवा का डोज मायने नहीं रखता।
गंभीर से गंभीर ,जानलेवा बीमारियों में टीका और वैज्ञानिक शोध कर एलोपैथी ने लोगों का ज्यादा भरोसा जीता है ,लेकिन ये भी सच है आहार,विचार ,योग ,प्राणायाम से हम अपने अंदर पनपने वाली बीमारियों को रोक सकते हैं जिसमें आयुर्वेद कारगर है।
इसीलिए दोनों ही अपनी अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं,और दोनों के उपर बहस नहीं होनी चाहिए कि कौन कितना असरदार है ,कौन नहीं।
समाप्त
संगीता सिंह