हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही औषधियों पर जोर देता रहा हैं..। रामायण काल में भी लक्ष्मण जी के मुर्छित होने पर संजीवनी बुटी का इस्तेमाल किया गया था..। आयुर्वेद और औषधि की खान हैं हमारे देश में..। 

नीम .. बबुल .. अश्वगंधा … हल्दी .. मुल्तानी ..ब्रंगराज..रीठा…आंवला…ना जाने कितनी ही ऐसी जड़ी बुटियां हैं जो हमारे शरीर के लिए  बहुत फायदेमंद हैं..। 
प्राचीन काल में हकीम और वैध ही हर बड़ी से बड़ी बिमारी का इलाज इन जड़ी बुटियों से करते आए हैं..। 
लेकिन आधुनिक समय में हमने पाश्चात्य संस्कृति को अपना लिया हैं..। हमने हमारे वैधो के महत्व को दरकिनार कर दिया हैं..। हम इन जड़ी बुटियों की महत्वता को भूला चुके हैं..। 
आज हम बाहरी अंग्रेजी दवाईयों पर ज्यादा भरोसा करते हैं..। हम इन दवाईयों के आदि हो चुके हैं..। एक दिन दवाई ना ले तो हमारा बी.पी . हाई हो जाता हैं.. शुगर बढ़ जाता है … । ये दवाइयाँ सिर्फ हमें क्षणिक राहत देते हैं.. जबकि आयुर्वेदिक दवाइयाँ और जड़ी बुटियां बिमारी की जड़ को खत्म करने की क्षमता रखते हैं..। उनका असर थोड़ा धीमी गति से जरूर होता हैं.. पर कोई भी हानि नहीं पहुंचाता हैं..। लेकिन हमें तो बुलेट ट्रेन की तरह भागने की आदत हो गई हैं.. हमें हर काम का परिणाम तत्काल चाहिए.. फिर चाहे वो आगे नुकसान ही क्यूँ ना करे..। इसलिए अपने इतिहास की महान वस्तु को साईड में रखकर हम सभी अंग्रेजी दवाइयों पर जोर देते हैं..और यहीं से हमारे स्वास्थ्य के साथ हम खुद खिलवाड़ करते हैं..। 
अभी भी वक्त हैं.. संभल जाइए..। 
जय श्री राम..।
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