हमारे देश के संविधान की व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री विधायक सांसद महापौर पार्षद सरपंच आदि सभी को आम जनता ही चुनकर इन पदों पर बैठाती है ताकि यह उनकी आवाज बन सके ।यह सारे पद जनता की सुविधा प्रदाता के रूप में होते हैं ।जनता जनार्दन के जनादेश से तख्ता पलट हो जाता है लेकिन वर्तमान परिवेश में हम सभी अपनी ताकत को भूलकर राजनीतिक बिसात के मोहरे मात्र बनकर रह गए हैं ।हम आम आदमी की ताकत को पहचानना ही नहीं चाहते। आम कहलाना  हमें मंजूर ही नहीं हम तो बस खास बनकर झूठी में ही जीना जाते हैं। सिग्नल पर रुकना, टोल नाके पर रसीद कटाना हमारी शान के खिलाफ है।
लंबी लाइन में लगकर इमानदारी से सही काम करवाने की बजाय अंदर वाले रास्ते से टेबल के नीचे से काम कराना सही समझते हैं ।आम आदमी बनकर अन्याय के खिलाफ लड़ना हमें गवारा नहीं ।आम आदमी सिद्धांतों पर जीता है शोषण के विरुद्ध खड़ा होता है पर हमें तो सबसे भले बनकर सिर्फ अपना हित साधना होता है ।हमने स्वयं आम आदमी की शक्ति को कमतर आंका है इसलिए हमारा आकलन दूसरों ने भी वैसा ही किया जबकि समय आ गया है यह बताने का कि जनादेश को नकारना किसी के वश में नहीं ।तो जब जागे तभी सवेरा आइए हम बता दें हम आम  ही तो खास हैं बहुत खास है
           प्रीति मनीष दुबे  
            मण्डला मप्र
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