आम कितना ख़ास बन जाए,
दिल में उसकी जब ठन जाए,
अलग पहचान बन जाता है,
सितारा सा चमक जाता है।
कहने को वह आम है रहता,
साधारण सा एक नाम है रहता,
पर ख़ास बनते ही देर ना लगती,
दुनिया फिर केवल उसे ही तकती।
किसी को आम भले ही मानों,
पर सम्मान उसके लिए भी जानों,
क्या पता कब चमक सा उठे,
साथ से तुम्हारे कदम ना रुके।
पूजा पीहू
दिल्ली