जाके पैर न फटी बिवाई वह ना जाने पीर पराई 
 जिसने जमाने से है चोट खाई 
 यह बात बस उसकी ही समझ में आई 
 खोखले आदर्शों की बजती है तूती 
 जब तक कोई बात खुद पर ना बीती 
 कोई खेल जाता है किसी के सपनों से 
 किसी को घाव मिले उनके ही अपनों से 
 यही तो होती है बस दुनियादारी  
एक-एक कर आती है सबकी ही बारी 
 गम है अगर तो खुशी अगली होगी 
 कड़ी धूप है तो कभी बदली होगी 
 किसी के दिलों की है गागर नारीति 
 इसे हम सुनाएं जो हम पर है बीती 
 सभी की जुबां पर है अब आप बीती 
              प्रीतिमनीष दुबे 
              मण्डला मप्र
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