एक छोटा सा किस्सा सुना रहीं हूँ…. । 
बात आज से कुछ वर्षों पहले की हैं….। मेरी छोटी बेटी कुछ साल भर की थीं…। हम सभी सपरिवार एक शादी के संगीत समारोह में गए हुए थे…। 
समारोह एक बहुत ही बड़े हॉल में रखा गया था… बेहद करीबी रिश्ता होने की वजह से हम सभी समय से बहुत पहले पहुँच गए थे…। 
संगीत समारोह के बाद ही खाने पीने का प्रोग्राम था..। 
शादी एक बहुत ही रहीस पार्टी के घर में थीं….। 
मैं अपनी शादी के बाद पहली बार उनके परिवार से मिल रहीं थी..। 
हम अपने घर से भी बहुत पहले निकले थे…। 
अब हुआ यूँ की घर से निकलकर और वहाँ पहुंचने के दरमियान फिर वहाँ सबसे मिलना जुलना…. संगीत समारोह की शुरुआत…..इन सभी में तकरीबन दो से तीन घंटे बित चुके थे…। 
बच्ची छोटी थी और इस दौरान अब वो भूख से बेहाल हो चुकी थी…। हमने अपनी सासु जी को कहा… लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया….। पतिदेव जी और घर के बाकी सभी सदस्य नाच गाने में व्यस्त थे…। बच्ची की भूख बढ़ती गई और उसने रोना शुरू कर दिया…। हमने वहाँ मौजूद घर के सदस्यों से कोई एंकात जगह के बारे में पुछा… पर वहाँ कुछ ही कमरे थे जो पहले से ही भरे हुए थे..। बहुत घुमे पर कहीं भी कोई ऐसी जगह नहीं मिली जहाँ हम बच्ची को फीडिंग करवा सकें…और उसका रोना भी सहन नहीं हो रहा था…। दो बार तो पानी पिलाकर उसे बहलाने की कोशिश की पर वो बहुत भूखी थीं…। डोल नगाड़ों की आवाज की वजह से किसी को बच्ची के रोने का इतना सुनाई भी नहीं दे रहा था… पर हमारी गोद में ही थीं… उसे यहाँ वहाँ घुमा- घुमाकर चुप करवाने की बरसक कोशिश कर रहीं थीं… पर सब व्यर्थ…। 
खाने पीने की भी अभी वहाँ सिर्फ तैयारियां हो रहीं थी… उसके इंतजार में बैठते तो कम से कम एक घंटा ओर लगता…। 
बच्ची के निरंतर इस तरह रोने से कुछ समझ ही नहीं आ रहा था..। 
हम खुले बगीचे मे बच्ची को गोद में ले यहाँ वहाँ घुम रहें थें की तभी एक औरत हमारे पास आई और बोलीं :- क्या बात हैं… बच्ची इतना क्यूँ रो रहीं हैं…। 
हमने उसे सारी बात बताई की भूख हद से ज्यादा हैं और एक कोना भी खाली नहीं हैं जहाँ उसकी भूख शांत कर सकें…। वो औरत हमें हॉल के ठीक सामने एक चाय की स्टाल पर ले गई…. वो वहीं रहतीं थीं… उसे पता था…. इस बारे में मैं अंजान थीं…। उसने बिना वक्त गंवाएं चाय वाले भईया से बच्ची के लिए दूध मांगा…। लेकिन भईया के पास भी दूध एकदम गर्म किया हुआ था….। चायवाले भईया जी ने बच्ची को रोता हुआ देखा तो उन्होने और वहाँ खड़े तीन चार लोगों ने सभी ने मेरी परेशानी को समझते हुए…. एक जग लिया और दूध को जल्द से जल्द ठंडा करने लगे…. उन्होंने वहाँ खड़े लोगो को चाय देना कुछ समय के लिए रोक दिया….जिसपर किसी ने कोई आब्जैक्शन भी नहीं किया… बल्कि बच्ची को चुप कराने के लिए मेरी मदद करने लगे…। कुछ मिनटों में ही दूध ठंडा हुआ और उन्होंने मुझे एक स्टुल दिया और बच्ची को दूध पिलाने को कहा…. बच्ची इतनी भूखी थीं की उसने गटगट करके झट से दूध पी लिया और कुछ मिनटों में ही मेरी गोदी में ही सो भी गई….। 
चूंकि मैं परिवार के साथ आई थी इसलिए उस वक्त मेरे पास पर्स नहीं था… उस औरत ने चायवाले भईया जी को पैसे दिए…. लेकिन उन्होंने लेने से साफ़ इंकार कर दिया…। वहाँ खड़े सभी लोगों ने कहा:- बच्ची के दूध के पैसे कौन लेता हैं बहनजी….। बच्ची सो गई वो ही हमारे लिए बहुत हैं…। बहुत बार पैसे देने चाहें पर उन्होंने नहीं लिए….। 
सच में इंसानियत तो उन चायवाले भईया में थी…।  अपना सारा काम कुछ देर के लिए छोड़ कर बच्ची के लिए दूध ठंडा करने में लग गए….।उसके अलावा वो चाहते तो मौके का फायदा उठाकर हमसे ज्यादा पैसे भी ले सकते थें…ऐसे में तो हम जो मांगते दे देते….लेकिन उन्होंने एक रुपया भी नहीं लिया..।
हम करीब एक घंटे से भी ज्यादा वक्त तक भीतर हॉल में बच्ची को लेकर यहाँ वहाँ घुम रहें थे…. मदद मांग रहे थे… वहाँ बने कुछ कमरों में भी गए थे… जहाँ जेन्ट्स लोगों की पार्टी चल रहीं थीं… पर किसी ने भी मेरी तकलीफ ना समझी ना मदद की…। 
आज भी उस औरत ….उन चायवाले भईया और उस वक्त वहां खड़े सभी लोगों के लिए  जिन्होंने मेरी तकलीफ समझी भी और मदद भी की…दिल से दुआ निकलती हैं..। 
मेरे लिए सभी अंजान थे… और मैं भी उन सभी के लिए अंजान थीं.. लेकिन हम सभी के बीच कुछ था तो बस इंसानियत…। 
उस दिन के बाद मुझे कभी भी वहाँ फिर से जाने का मौका ही नहीं मिला हैं…. लेकिन वो रात आज भी यादगार हैं मेरे लिए…। 
आज इस लेख से उन सभी को दिल से शुक्रिया अदा करतीं हूँ….। 
चायवाले भईया की वो इंसानियत आज भी मेरे जहन में हैं… जहाँ मेरे अपने आज तक इन सबसे अंजान हैं…। 
जय श्री राम….।
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