रामशरण एक गरीब परिवार से था । उसके बापू एक दिहाड़ी मजदूर थे । रोज कमाने और अपना भरण-पोषण करने वाले परिवार का एकलौता बेटा रामशरण था उससे बड़ी चार बहनें थीं । परिवार बड़ा था इसलिए सारा पैसा खाने – पीने में ही खर्च हो जाता था । रामशरण के बापू ने किसी तरह से पैसे का जुगाड़ करके रामशरण को बारहवीं तक पढ़ाया था और रामशरण ने भी बारहवीं प्रथम श्रेणी में पास कर रही थी । रामशरण की दिली ख्वाहिश थी कि उसके दोस्तों की तरह उसके पास एक रेडियो हो लेकिन उसके पास इतने पैसे थे नहीं कि वह कोई नया रेडियो ही खरीद सकें । अपनी यह ख्वाहिश पूरी करने के लिए एक दिन वह अपने दोस्तों से छुपकर एक दुकान पर भी गया था जहाॅं पुराने रेडियो की ब्रिक्री होती थी लेकिन पुराने रेडियो तक को खरीदने के लिए उसके पास रखें पैसे कम पड़ गए और वह दुखी मन से अपने घर जाने लगा तभी उसकी नज़र पुनः रेडियो पर पड़ी और उसे लगा कि वह रेडियो उसे अपनी तरफ खींच रहा है । उसने देखा कि उसके ही बापू का दोस्त जो एक कबाड़ी का काम करते थे वह एक हाथ में रेडियो और दूसरे हाथ में कबाड़ की बड़ी सी थैली ले जा रहे थे । रेडियो देखते ही रामशरण की ऑंखें चमकने लगी । कुछ देर पहले जिन ऑंखें बुझी – बुझी थी उन ऑंखों में एकाएक चमक आ गई थी और ना जाने उस रेडियो ने रामशरण को क्या कर दिया था वह उस रेडियो को कैसे भी करके पाना चाहता था ।
रामशरण ने कबाड़ी वाले चाचा को पहले आवाज लगाई और पास जाकर प्रणाम करके रेडियो के बारे में पूछा । कबाड़ी वाले चाचा से उसे पता चला कि जब वह कबाड़ को इकट्ठा कर रहे थे तभी यह रेडियो उन्हें एक पेड़ के पास पड़ा हुआ मिला था । जब उन्होंने इसे चलाने की कोशिश की तो वह रेडियो नहीं चला । कबाड़ में बेचने का सोच कर उन्होंने रेडियो को उठा लिया और अब वो उसे बेचने जा रहे है । रामशरण ने कहा कि चाचा ! क्या आप मुझे यह रेडियो दीजिएगा । कबाड़ी वाले चाचा ने कहा कि यह रेडियो तो चल ही नहीं रही तुम इसका क्या करोगे ?? रामशरण ने कहा कि वह इसको बनवाकर उपयोग में लाएगा । रामशरण ने कबाड़ी वाले चाचा से कहा कि चाचा जब मेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं आपको इस रेडियो के जितने भी पैसे आपको कबाड़ में बेचने से मिलते वह मैं आपको दे दूंगा । कबाड़ वाले चाचा जो उसके बापू का दोस्त था रामशरण की रेडियो के प्रति इच्छा देखकर उसे रेडियो दे दिया और चले गए । रेडियो पाकर रामशरण खिल उठा और बुदबुदाने लगा कि पहले इसको रेडियो बनाने वाले के पास लेकर जाना पड़ेगा तभी तो मैं इसे सुन पाऊंगा । यह सोचते हुए रामशरण रेडियो बनाने वाले की दुकान पर जाने के लिए एक मोड़ से मुड़ ही रहा था कि उसका हाथ रेडियो के बटन पर चला गया और घर्र …घर्र …. की आवाज आने लगी । रामशरण पहले तो यह आवाज सुनकर डर गया कि ना जाने कहाॅं से आवाज आ रही हैं लेकिन जब उसने देखा कि यह आवाज तो रेडियो से आ रही है तो वह खुशी से झूम उठा और रेडियो का बड़ा वाला बटन दाएं बाएं करने लगा । अब रामशरण को पूरा यकीन हो गया था कि रेडियो तो चल रही है इसे रेडियो बनाने वाले के पास ले जाने की जरूरत नहीं है । उसने सोचा कि चाचा ने रेडियो की ठीक से जाॅंच नहीं की होगी तभी वह कह रहे थे कि यह खराब रेडियो है ।
रेडियो सुनने की बेचैनी रामशरण को इतनी थी कि वह एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गया और अपनी ऑंखें बंद करके रेडियो में गाने सुनने लगा तभी अचानक गाना बंद हो गया और एक आदमी की आवाज आने लगी । रामशरण घबरा गया जब उसने देखा कि एक आदमी रेडियो से निकल कर उसके पास आकर बैठ गया और रामशरण से कहने लगा कि दोस्त ! मुझसे डरो मत मैं यहाॅं तुम्हें नुकसान पहुॅंचाने नहीं आया हूॅं । मैं तो तुमसे मदद माॅंगने आया हूॅं । रामशरण ने डरते हुए उस रेडियो से निकलने वाले आदमी से पूछा कि मैं आपकी मदद कैसे कर सकता हूॅं ??
रेडियो से निकलने वाले आदमी ने कहा कि एक सप्ताह पहले मैं बहुत खुश था क्योंकि मुझे आर्मी में नौकरी लग गई थी और खुशी – खुशी में ही मैं अपनी मोटर साइकिल उठाकर मिठाई खरीदने के लिए अपने घर से निकला और उस मोड़ के पास एक ट्रक वाले ने मुझे टक्कर मार दी । मैं मदद के लिए पुकारता रहा वह कुछ देर वहाॅं रूका भी तभी मैंने देखा था कि उसने बहुत पी रखी थी और उस ट्रक पर एक पंद्रह साल के आसपास का एक लड़का भी था । उनलोगो ने मेरी चीख भी सुनी थी लेकिन वे लोग मेरी मदद करने के बजाय वहाॅं से भाग गए और मैं लुढ़कते हुए वह पास वाले जंगल में पहुॅंच गया । मेरे सिर पर से बहुत खून बह रहा था जिस कारण मेरी तड़प – तड़प कर मौत हो गई और मेरी आत्मा अब इंसाफ के लिए भटक रही है । दोस्त ! यही मेरी आपबीती हैं । रामशरण रेडियो से निकले आदमी को देखकर डर भी रहा था और उसे आश्चर्य से देख भी रहा था । रामशरण को यूं अपनी तरफ आश्चर्य से देखते हुए देख कर रेडियो से निकले आदमी ने रामशरण से कहा कि यदि तुम मेरी मदद करोगे तो तुम्हें जल्द ही नौकरी भी लग जाएगी । रामशरण सोचने लगा कि बड़ी मुश्किल से घर चल रहा है और पिछले एक साल से नौकरी के लिए धक्के खा रहा हूॅं लेकिन वह नौकरी मुझे मिल ही नहीं रही है । अगर मैं इसकी मदद कर देता हूॅं तो शायद मुझे नौकरी मिल जाए । वैसे भी कोई काम तो करता नहीं हूॅं , खाली रहता हूॅं । कुछ नहीं हुआ तो किसी की मदद करने का पुण्य ही मिल जाएगा । उस आदमी के कहेनुसार रामशरण पहले तो पुलिस स्टेशन गया और पुलिस को लेकर उस जगह पर पहुॅंचा जहाॅं उस आदमी के साथ यह दुर्घटना हुई थी । साथ में वह आदमी भी था और वह जैसे – जैसे रामशरण को सारी बातें बता रहा था रामशरण वही बातें पुलिस को बता रहा था । रामशरण से जब पुलिस ने यह पूछा कि सारी बातें तुम्हें कैसे पता चली रामशरण ने कहा कि जिस समय यह घटना घटी मैं पास ही था और इसे होते हुए मैंने देखा था और घबरा गया था इसलिए उस समय आपके पास नहीं आया लेकिन अब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ है और उस आदमी को इंसाफ दिलाने के लिए मैं आपके पास आया हूॅं । कुछ ही घंटों में ट्रक ड्राइवर पकड़ा गया और पुलिस की सख्त पूछताछ के बाद उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया ।
इस घटना के दो दिन बाद ही रामशरण की भी नौकरी लग लगी और रामशरण उस रेडियो वाले आदमी का धन्यवाद करने रेडियो लेकर पीपल के पेड़ के नीचे पहुॅंचा और उसने उसे आवाज लगाई तो वह आदमी रामशरण के पास आया । रामशरण ने जब उस रेडियो वाले आदमी का धन्यवाद किया तब बोला कि धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए क्योंकि तुमने बिना डरे मेरी मदद की और मेरे गुनहगारों को सलाखों के पीछे पहुॅंचवाया । मैंने मदद तो इस रेडियो के जरिए बहुत लोगों से माॅंगी थी लेकिन किसी ने मेरी आपबीती नही सुनी और डरकर भाग गए । तुम ही ऐसे पहले शख्स थे जिसने मेरी आपबीती सुनी और उसपर विश्वास करके मेरी मदद की । अब मैंने इस योनि से मुक्ति पा ली हैं और मैं भी तुमसे मिलकर जाना चाहता था इसलिए अभी तक रूका था । अब चलता हूॅं दोस्त ! अपना ख्याल रखना और जो नौकरी मिली है उसे अच्छी तरह करना । यह कहकर रेडियो से निकला आदमी गायब हो गया । आज रामशरण अपना सामान लेकर शहर जा रहा था क्योंकि वहीं पर उसकी नौकरी लगी है । जातें हुए जब वह उस पीपल के पेड़ को देखता तो उसे उस रेडियो से निकले दोस्त की याद आ जाती है और वह कहता है कि दोस्त ! मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकता और यह बात भी किसी को बता भी नहीं सकता क्योंकि कोई भी ऐसी घटना पर विश्वास नहीं करेगा लेकिन मैं जानता हूॅं कि हम दोनों ने एक – दूसरें की मदद की थी । अगर तुमने मेरी मदद नहीं की होती तो जो नौकरी मुझे पिछले एक साल से नहीं मिल रही थी वह दो दिन में मिल गई । कोई माने या नहीं मानें पर हम अब पक्के वाले दोस्त हैं और उस दोस्ती की निशानी अभी भी मेरे पास है और सारी जिंदगी रहेगी । यह कहते हुए रामशरण ने अपना बैग खोला और बंद पड़ी रेडियो को अपने हाथों में उठाकर उसे सीने से लगा लिया ।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
” गुॅंजन कमल ” 💗💞💓