ग़र जो सुनाऊ आपबीती
कुछ पल मुझे सुनोगे क्या,
बड़ा बैचैन सा है मन आजकल
इसकी राहत बनोगे क्या,
ग़र जो सुनाऊ आपबीती
चैन से कुछ पल मुझे सुनोगे क्या,,
समंदर सी मोहब्बत है मुझमें,
इसका साहिल बनोगे क्या,
बेज़ार सा वक़्त बीत रहा मेरा,
अपना साथ देकर इसको सुनहरा करोगे क्या
ये जुगनूओं सी झिलमिल चांदनी रातें
मेरी तन्हाईयों का परिहास बनाती है,
अपना साथ देकर मेरी तन्हाईयों को
कुछ पल आबाद करोगे क्या,
बिखरे से है ज़ज़्बात मेरे इन दिनों,
अपने आगोश में लेकर समेट लोगे क्या,
ये ज़िन्दगी का सफ़र अकेले नामुमकिन सा है मेरा,
मेरे साथ चलकर ये सफ़र आसान करोगे क्या
कभी बैठो कुछ पल संग एहसास ए दरखत तले
इश्क ए छाँव मेरे एहसासों की महसूस करोगे क्या..
आज सुनाऊ तुम्हें अपनी आपबीती,
कुछ पल बैठकर सुनोगे क्या….
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड