आज के दौर में,,, अपनापन चाहते हो
पागल हो क्या,,, धूप में छावँ चाहते हो
अपने भी जब ,,,,, अपने न रहे ” राधे ”
ऐसे अपनों से,,,, बेकार ही स्नेह चाहते हो
रंग होली के ,,,, बदले न ऐसा चाहते हो
भेष में शैतान,,, आवरण उतारना चाहते हो
लगी द्वेष की,,, अंतर्मन झूठ लाना चाहते हो
कल जिसे खोना ,,, उसे ही पाना चाहते हो
आधियाँ रोक ले,,, ऐसा दीपक जलाना चाहते हो
रख हिम्मत अब,,,,देखना होगा वहीं जो तुम चाहते हो
© रेणु सिंह राधे,✍️
कोटा राजस्थान