जैसा समझा गया है मुझको, आदमी नहीं हूँ वैसा।
मेरा मतलब तो यही है, बात मतलब की कहो।।
मानता हूँ यह तो मैं भी, पाप मुझसे भी हुआ है।
मेरा फिर भी यह कहना है, तुम मिलजुलकर रहो।।
जैसा समझा गया है———————–।।
हसीन वक़्त ने मुझसे कहा, छोड़ दूँ मैं यह शराफत।
लुत्फ जिंदगी का मैं लूँ ,मानकर खिलौना मोहब्बत।।
माफ करना यारों मुझको, मेरी ऐसी नहीं है हसरत।
मेरी नसीहत तो यही है, बेअदब कभी ना रहो।।
जैसा समझा गया है————————।।
मुझको मालूम है मुशरिक, मादरे- हिंद का भी फर्ज।
शहादत उन शहीदों की, अपने वालिद का भी कर्ज।।
मर्ज मेरा भी समझो तुम, और मजबूरी मेरे कर्म की।
मेरा मकसद तो यही है, बात ईमान की तुम कहो।।
जैसा समझा गया है———————–।।
ऐसी हो यहाँ सबकी मोहब्बत, अदब जिसमें हो मौजूद।
मुकम्मल हो ख्वाब सभी के,ऐसी दुहा जिसमें हो मौजूद।।
समझो मेरे अजीज तुम हालात, मेरे लबों की मायूसी।
मेरी ख्वाहिश तो यही है, मुझे दुश्मन अपना नहीं कहो।।
जैसा समझा गया है———————-।।
साहित्यकार एवं शिक्षक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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