नारी देखो अब, मौज मनाती,
पतिदेव से सब, काम करवाती,
नारी देखो अब…..
खुद पलंग पर, आराम फ़रमाती,
ऐ जी सुन लो अब, तुम मेरी बात,
अब न करुं चाकरी, गया ज़माना, 
सासू माँ जब, सब काम करवाती,
नारी देखो अब…..
चूल्हा चौका, और बरतन भाड़े,
कर देती सब, मेरे मत्थे चढ़ाए,
उन्ना लत्ता धो ले, तना बहुरिया,
बुलाए फिर, हाथ पाँव दबवाती,
नारी देखो अब…..
अब आ गयी हूँ मैं, अपने रुप में,
नहीं रही मैं बेचारी, अबला नारी,
पैसा भी लाओ, घर भी सम्हालो,
बहुत हुआ अब, मैं काम करवाती,
नारी देखो अब…..
घर का कूड़ा करकट, साफ करो,
उन्ना लत्ता भी अब, सब फीचो तुम,
बहुत करी बेगारी, जरा आराम करुं,
कामचोरी क्या होती, तुम्हें बतलाती,
नारी देखो अब…..
खुद पलंग पर, आराम फ़रमाऊं,
मजों से अब, फल-फूल खाऊं,
पतिदेव से अब, रोटी बनवाती,
तिगनी का देखो, नाच नचवाती,
नारी देखो अब मौज मनाती,
नारी देखो अब…..।
     काव्य रचना-रजनी कटारे
            जबलपुर म.प्र.
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *