मुझे लगा था कि तुम्हें खत लिखने  से मेरी  भावनाओं की आत्मीयता तुम तक पहुॅंच जाएगी क्योंकि जब हम लिखते हैं तो हमारे  विचारो की अभिव्यक्ति में लय बनी रहती है । हर रोज जब  अपने मन के  हर एक राग को   शब्दों में गूंथता हूॅं तो यही सोचने  हूॅं कि जब तुम मेरी भावनाओं से जुड़े एक – एक शब्द को पढ़ोगी  तो वें शब्द तुम्हारे दिल में उतरते चले जाएंगे । काश !  तुम मेरे द्वारा  लिखे उन  खतों  को पढ़ पाती जैसे मैंने सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ही लिखा है ।  जब से तुम मेरी जिंदगी से गई हो मेरी जिंदगी रेगिस्तान की तरह  वीरान हो गई है । नीरसता भरे इस जीवन में खुशी के पल तो ईश्वर ने बहुत दिए  लेकिन दिल को  खुशी जिसके साथ मनाने की तमन्ना थी उसे उन्होंने मुझसे हमेशा के लिए  छीन लिया । 
मेरी सुनंदा ! पहला प्यार वों भी  पहली नजर में । इस बात पर यकीन ना करने वाला  किशन उस दिन दिल के हाथों मजबूर ऐसा हुआ कि  अपने द्वारा कहे इन शब्दों के भंवर  में ऐसे फंसा कि उसमें से  निकलना ही भूल गया ।  तुम्हारी आंखों की अठखेलियां … गालों  की सुर्ख  लाली … इनमें मेरा दिल  ऐसे खोया कि  जिस शादी को मैं  जबरदस्ती का रिश्ता समझकर मजबूरी में निभाने चला था वही रिश्ता अब  मेरी पसंद बन चुका था । 
याद है तुम्हें ? जब मेरा और तुम्हारा पहली बार आमना-सामना हुआ था । लड़कियों की भांति  मेरी  ही  नजरें  शर्म से झुकी  चली  जा रही  थी । मेरी हालत देखकर कितनी हंसी थी तुम । तुम्हारी खिलखिलाहट  जब मेरे कानो मैं पड़ी मेरी नजरें खुद – ब –  खुद तुम्हारी मुस्कान पर ही जाकर टिक  गई थी  । अपलक निहारने लगा था मैं तुम्हें । मुझे यूं अपनी तरफ निहारते हुए देखकर तुम्हारे होठों से हंसी अचानक से गायब हो गई । तुम्हारी हंसी रोकने का जिम्मेवार मैं अपने आपको मानकर उसे  कोस ही  रहा था कि तभी अचानक से मां की आवाज सुनाई दी । बाद में पता चला कि मां तुम्हारी हंसी सुनकर ही कमरे में आई थी और उन्हीं को देखकर तुम चुप हो गई थी । मेरा बस चलता तो मैं तुम्हें खिलखिला कर हंसने की मंजूरी तब तक दे देता जब तक कि तुम्हारा दिल ना भर  जाता लेकिन उस घर में तो मेरी मां की ही  चलती थी ।  उनकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिलता था । मेरे पिताजी भी मां के सामने कुछ नहीं बोलते थे । चुप्पी साध लेते थे ताकि घर का माहौल ठीक रह सके । खैर छोड़ो उन बातों को । अब तुम मेरी थी । जिस प्रकार तुलसीदास जी शादी के बाद अपनी पत्नी के मोह  में पड़ गए  थे ठीक उसी प्रकार मैं भी तुम्हारे प्रेम पास में ऐसा फंसा कि मुझे दुनिया की खबर ही नहीं रही । 
अब तो इसकी शादी भी हो गई । कब यह  अपनी और अपनी पत्नी की  जिम्मेदारी  उठाने लायक बनेगा ? इसे  कब अक्ल आएगी कि  एक आदमी औरतों की तरह घर में बैठा अच्छा नहीं लगता ?   वह तो बाहर जाकर कमा कर लाए यही उसके लिए और परिवार के लिए हितकर साबित होता है । अपनी और अपनी पत्नी की जिम्मेदारी निभाने के रोज ही ताने  मिलने लगे । बड़े भाई – भाभी यही कहते कि कब तक अपनी पत्नी के पल्लू में बंधा  रहेगा ? इसे तो  तनिक भी लाज नहीं है कि दिन भर घर में घुसा  रहता है और पत्नी भी  ऐसी मिली है कि इसे कुछ कहती ही नहीं  । यह कहती ही नहीं कि बाहर जाकर कमा कर लाओ । कब तक इन दोनों को बैठाकर खिलाते रहेंगे ? 
उस दिन मुझे लगा कि परिवार वालों के ताने सुनकर तुम मुझ पर गुस्सा होगी और मुझसे  कहोगी कि मुझे इनकी बातें नहीं सुननी ।  आप बाहर जाकर कमा कर लाइए लेकिन मेरी सोच के विपरीत ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । जब सामने वाला आपसे शिकायत ना करें तब ऐसा होता है कि दिल खुद ही आपसे  शिकायत करने लगता है । मेरी पत्नी ने तुम मुझसे कोई शिकायत नहीं की लेकिन मेरा दिल ही मुझसे शिकायत करने लगा । आज तक मैंने अपने दिल की सुनी थी आगे भी कैसे  ना सुनता ? 
चल पड़ा अपनी खुद की  राह बनाने । तुम्हारा साथ तो पहले से था ही अब तुम और भी मजबूती से  मेरा हाथ थाम कर मेरे कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार थी । तुम्हारा मुझ पर विश्वास और मेरी मेहनत ने रंग दिखाया और दो  सालों में ही मैंने खुद की अपनी किराने की दुकान खोल ली । कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता । जिस काम से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन होता है जिस काम से पेट पलता है आखिर वह काम छोटा कैसे हो सकता है? यही  जवाब दिया था ना तुमने मेरी भाभी को जब उन्होंने मेरे किराने की दुकान खोलने पर व्यंग्य किया था । इतना पढ़ने लिखने के बावजूद भी मेरे किराने की दुकान खोलने पर उन्हें एतराज था लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि मैं अपनी शिक्षा का इस्तेमाल अपने बिजनेस को तरक्की की ऊंचाइयों तक ले जाने  में कर रहा था । सिर्फ एक  साल ही तो लगा था मुझे एक छोटे से किराने की दुकान से एक बड़ा सा मार्ट  बनाने के सफर तय करने में । उसके बाद तो मैंने पीछे मुड़कर कभी भी नहीं देखा । भगवान ने मुझे सब कुछ दिया । शुरुआत तुम्हारे प्यार से हुई थी उसके बाद तुमने मुझे मेरी बगिया के दो फूल दिए । बेटी की तमन्ना ने तीसरे बेटे को मेरी और तुम्हारी झोली में डाल दिया । अब हम तीन बच्चों के माता-पिता थे । मैंने भी किस्मत से समझौता कर लिया और  हम दोनों ने मिलकर आगे परिवार ना बढ़ाने का निर्णय लिया । कितनी खूबसूरत  यादें थी  ना । बच्चे के जन्म से लेकर उन्हें पढ़ाने – लिखाने …  अपने बिजनेस को और भी  ऊंचाइयों  पर ले जाने की । तुमने मुझे कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया । मैं ही तुम पर गुस्सा करता था लेकिन तुम तो…. मैंने सुना था औरत सहनशीलता की मूर्ति होती है यह बात तुमने मुझे साबित करके दिखा दी थी । लोगों के  तानों को तुम अपनी मुस्कान  ऐसे छुपा देती थी जैसे चांद घने बादलों में छुप जाता है । 
जब तुम मेरी जिंदगी में आई थी तब मैं एक मामूली सा बेरोजगार किशन था लेकिन तुम्हारा साथ पाने  के बाद से मेरी किस्मत ऐसी चमकी कि  मैं शहर का बहुत बड़ा  बिजनेसमैन किशनलाल  बन बैठा । मुझे जब लगने लगा कि मुझे जिंदगी से अब कोई शिकायत नहीं है । तुमने मेरी जिंदगी को इतना खूबसूरत जो बना दिया था जिसकी कल्पना भी मैंने कभी नहीं की थी । मैं अपने आप को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान समझने लगा था । कहते हैं इंसान को कभी भी अपने आप पर घमंड नहीं करना चाहिए । यहीं पर मेरे से भूल हो गई जिसकी सजा भगवान ने मुझे दी । तुम्हें मुझसे उन्होंने छीन लिया । तुम ही तो मेरी ताकत थी ताकत के बिना इंसान ना तो ठीक से चल सकता है और ना ही जिंदगी जी सकता है । तुम्हारे जाने के बाद जिंदगी जैसे रूक सी  गई थी । भगवान पर सच्ची आस्था रखने वाली तुम मुझे छोड़कर उनके पास चली गई थी ऐसे में मैं अपने आप को कैसे संभाल पाता । मैं तुम्हें ऐसा नहीं कह रहा कि तुमने अपनी जिम्मेदारी बीच में ही छोड़ दी और मुझे अकेला जिम्मेदारी उठाने के लिए छोड़ कर चली गई । जाने से पहले तुमने अपनी तमाम जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था तभी तो मैं कह रहा हूं कि मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं थी और जिंदगी से भी नहीं थी लेकिन तब तक जब तक तुम मेरे साथ थी । हमारे तीनों बेटे अपने – अपने कारोबारों  में व्यस्त हैं । मेरे पास अब कोई काम नहीं है सिवाय  तुम्हें याद करने के  और तुम्हें रोज खत लिखने के । यह देखो ! तुम्हें मैंने कितने खत  लिखे हैं। अब तो मोबाइल आ गया है जिसने इन खतों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं तो तुम्हें अभी भी और जब तक मेरी सांस चलती रहेगी तब तक तुम्हारे नाम रोज एक खत लिखा करूंगा । मैं जानता हूॅं  कि इन खतों की गिनती  तक अधूरे खतों में  की जाएगी जब तक कि  यह तुम तक न पहुंच जाए । मेरे जज्बात भरे खत मैं तुम तक पहुंचाना चाहता हूॅं साथ ही मैं यह भी जानता हूॅं  कि यह मुमकिन  नहीं है । जैसे तुम्हारे पास हर एक समस्या का समाधान होता था वैसे इस समस्या का समाधान भी मैंने ढूंढा है।  मैंने अपने रोज लिखें जज्बात भरे खत को तुम तक पहुंचाने का एक तरीका निकाला है । रात के टिमटिमाते हैं तारों के बीच मुझे एहसास होता है कि तुम वही पर हो । तारों में तुम्हारा अक्स देखने लगा हूं मै ।  तुम्हारे जाने के बाद से जैसे  मैं  रोज तुमसे  बातें करता हूॅं वैसे ही मैंने तय किया है कि आज से अपने लिखे हर खत को यहीं पर बैठकर तुम्हें रोज सुनाया करूंगा । ऐसा करने से मेरे खतों को पूर्णता मिल जाएगी ।  चलो ! शुरुआत करते हुए आज का खत में तुम्हें पढ़कर सुनाता हूॅं । 
किशनलाल  अपने द्वारा लिखें  खत को अपनी पत्नी सुनंदा को  पढ़कर सुनाने लगता है । उसे एहसास हो रहा है कि  उसकी सुनंदा उसके आस – पास ही है और उस खत को जो वों पढ़ रहा है उसे  सुन रही है । किशन लाल आज  बहुत खुश है और सुनंदा की तरह ही अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए वह इन खतों  को बारी-बारी से पढ़ते हुए उसे सुना रहा है । 
खतों के माध्यम से किशनलाल अपनी पत्नी सुनंदा को अपने करीब रोज ही महसूस करने लगें थें । करीब एक महीने बाद ही  उनके जिंदगी में एक दिन ऐसा भी आया जब रोज की तरह अपनी पत्नी को अपने द्वारा लिखे खत  को पढ़कर सुनाने के बाद वें घर आए । आज उन्हें अपनी पत्नी की बहुत याद आ रही है थी । उन्होंने खाना भी नहीं खाया और अपने कमरे में आ गए । अपनी पत्नी की तस्वीर के पास खड़े होकर उन्होंने अपने खत को कमीज की जेब से निकालकर  तस्वीर के  पास रखा और कहा कि मेरे इस आखिरी खत को कबूल करो और मुझे अपने पास बुला लो । तुम्हारे बिना अब मैं एक पल भी नहीं रहना चाहता । स्वर्ग या नर्क जहां भी तुम्हारा वास हो     तुम मुझे सिर्फ अपने पास बुला लो । 
बहुत देर तक किशनलाल  अपनी पत्नी सुनंदा की तस्वीर को अपलक देखता ही रहा । उसके बाद आंखों में आंसू लिए वह अपने बिस्तर पर आ गया और सोने की कोशिश करने लगा । 
घर में सबसे जल्दी उठने वाले किशनलाल जब अगली सुबह  ८:००  बजे तक नहीं उठे तब उनके कमरे के दरवाजे को उनके बड़े बेटे ने तोड़ दिया । पहली नजर में तो उसके बेटे को लगा कि  उसके पिताजी सोए हुए हैं लेकिन जब वह उनके नजदीक पहुंचा और अपने पिता को उसने छुआ तब जाकर उसे एहसास हुआ कि उसके पिता अब नहीं रहें । उसके बड़े बेटे ने परिवार के सभी सदस्यों को उस कमरे में बुला लिया और उसके बाद सभी ने देखा कि किशन लाल ने अपनी पत्नी सुनंदा की तस्वीर के नीचे गुलाब के फूल के साथ जो खत रखा था उस पर लिखा था    ” आखरी खत ” 
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                                            धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
२०/०१/२०२२
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