सोया था मै अभी
अभी तो लगी थी आँख
अभी तो नींद की गहराइयों मे
जाना मेरा बाकी था।
किसी की सिसकियाँ ने
मुझे नींद से जगा दिया।
सहम कर उठ बैठा
डर सा लगने लगा ।
गौर से सुनने लगा
उसी ओर बढ़ने लगा
जहाँ से आ रही थी
किसी की सिसकियाँ
देख कर हैरान हो गया
किताबों की अलमारी मे
एक किताब के मध्य मे
रो रहा था कोई यहाँ
मैने किताब उठाकर
खोल कर देखा उसे
भर रहा था सिसकियाँ
वो तुम्हारा आखिरी खत।
वो खत जिसको लिखते हुये
तुम्हारी आँखो से गिरे अश्रु
आज भी इस खत के भीतर
पीड़ा से कराह रहे थे।
ये खत जो आज भी
तुम्हारे उन आखिरी शब्दों को
फिर से दोहरा रहा है
ये तुम्हरा वही आखिरी खत है।
कविता गुज्जर