क्या कहे अब तुमसे,
शायद तुम कोई बुरा ख़ाब ही थे।
जिसमें न दिल था ।
न उसमें पनपने वाला अहसास,
था तो बस केवल
हाड़ मांस का बना शरीर
जिसमे कोई जज़्बात न था।।
अपनी तारीफ के कसीदे तू खुद पढ़ता है,
शायद कोई है नही तेरी तारीफ़ करने को,
ये बात तू भी बाखूबी जानता है।।
न जाने कैसा भरम तू पाल बैठा है!!
की तेरे चाहने वाले की तादात बड़ी लंबी है,
लेकिन तुझसा ग़रीब मैंने नही देखा हैं,
जिसकीं जिंदग़ी बड़ी मुफ़लिस में बीत रही है,
और तू बेखबर ,
इस बात से है बना बैठा है।।
सरीफो के बाजार में तू फ़रेबी,
बनकर बैठा था,
थामकर मासूमो का दिल ,
अपने पैरो के तले रौंदा था।
बड़े मासूम थे वो लोग जो तेरे,
बहकावें में आते थे।
समझकर दोस्त अपना तुझे,
हर सुख दुख बाँटते थे।
लेक़िन भूल गए वो इस बात को,
की सच्चा इंसान अब ,
कहा इस दुनिया में बसा करते है।।,,
तू अपने छल से सबको छलता रहा,
कभी नही मिलेगी मात मुझे,
तू इस बात की घमंड करता रहा।
लेकिन भूल गया इस बात को,
की पाप का घड़ा भी भरता है,
जब नही बचा रावण तो फिर,
तू क्या औकात रखता है।
माना देर है उसकी सुनवाई में
लेक़िन अंधेर नही होगा,,,
तू बच गया यहा तो क्या!!!,,
तेरा फैसला खुदा की अदालत में होगा
सुमेधा शर्व शुक्ला