जीवन में चलती रहती है आंधियां
कभी हल्की फुल्की आती हैं आंधियां।
कभी चक्रवात का रूप ले लेती आंधियां।
बागों के कच्चे फल गिराती है आंधियां।
पेड़ों के नाजुक मजबूत टहनी तोड़ती आंधियां।
बादलों से धूल के गुब्बार उड़ाती आंधियां।
झोपड़ियों के छप्पर उड़ाती आंधियां।
शर्मीली गोरी के घूंघट हटाती शरारती आंधियां।
गरीबों को बेघर करती बेदर्द आंधिया।
बिजली के तार उलझाती आंधियां।
यातायात बाधित करती है आंधियां।
कभी हल्की गुदगुदी करती है आंधियां।
                 -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण
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