“नाना जी आ गए …नाना जी आ गए ”
जैसे ही शर्मा जी ने दरवाजा खोला वैसे ही ३ वर्ष की नातिन नाव्या ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया।
नातिन को गोद में उठा के शर्मा जी के चेहरे पर खुशी और जिज्ञासा के मिश्रित भाव आ गए।
अभी २ हफ्ते पहले ही बेटी यहां से गयी थी, अचानक फिर से बेटी का यूं घर पर आना शायद उन्हें परेशान कर रहा था।
ड्रॉइंग रूम में बेटी और पत्नी को कुछ बात करते हुए देखा।
“गुड़िया कब आयी बेटा ? और घर पर सब कुछ ठीक हैं ? और रोहित जी कैसे हैं ?
“हाँ पापा सब ठीक है”
गुड़िया ने उठकर शर्मा जी के पैर छुये, शर्मा जी ने अपना हाथ उसके सर पर रख कर उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया।
जिस बेटी के नन्हें पैरों और किलकारियों से कभी घर का आँगन चहकता था, आज उसी बेटी का घर आना शर्मा जी को थोड़ा सा परेशान कर रहा था।
पर घर पर आयी बेटी से आने की वजह पूछना शायद ही किसी पिता के सम्भव हो।
शर्मा जी ने पत्नी और बेटी के चेहरे के अन्दर छुपी हुई उदासी को पढ़ने की बहुत कोशिश की लेकिन नारी के मन को पढ़ना किसी के लिए आसान नहीं।
“अरे सुनो चाय बना लो”
“चाय बन रही है, आप तब तक फ्रेश हो लीजिये”
फ्रेश होने के बाद सबने साथ बैठ के चाय पी और चाय के बाद शर्मा जी नातिन को लेकर बाजार की तरफ घूमने निकल गए।
रास्ते में नातिन को कन्धों पर बिठाते हुए २८ वर्ष पीछे चले जब वो अपनी नन्ही गुड़िया को अपने कन्धों परबिठा के रोज ऑफिस से वापस आने के बाद घुमाया करते थे।
पिता संसार में इक ऐसा प्राणी है जो अपनी औलाद को देखकर जीता और मरता है।
रात को पत्नी से पता चला कि दामाद रोहित कहीं प्रॉपर्टी ले रहे हैं और उनको ५ लाख रुपए चाहिए, उनके दामाद रोहित एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करते हैं।
शर्मा जी ने खामोश आँखों से पत्नी को देखा शायद उनकी पत्नी ने उनकी आँखों में झिलमिलाती हुई मजबूरी और खामोशी दोनों ही पढ़ ली थी ।
एक सरकारी बैंक में क्लर्क पद पर कार्यरत श्यामबाबू शर्मा जी ने हमेशा ईमानदारी को अपना जीवन-आदर्श माना और किसी से भी कभी कोई रिश्वत नहीं ली, उन्होंने अपनी इकलौती बेटी गुड़िया (अर्चना) को उच्च शिक्षा के साथ-साथ उच्च संस्कार भी दिये।
उनकी धर्मपत्नी शोभा बेहद सुलझी हुई और सरल स्वभाव की आदर्श गृहणी हैं, उन्होंने जीवन के हर उतार-चढ़ाव में शर्मा जी का सदैव भरपूर साथ दिया।
४ साल पहले अपनी गुड़िया की शादी अपनी हैसियत से बढ़कर की थी, शायद इसी वजह से शर्मा जी सारी जमा राशि ख़त्म हो चुकी थी सिवाय पत्नी के नाम की गयी फिक्स्ड डिपॉजिट के जो उन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद के लिए बचा रखी थी।
२ साल के बाद शर्मा जी का रिटायरमेंट होना है।
भविष्य की चिन्ता और वर्तमान की उधेड़बुन में शर्मा जी सो गए।
सुबह नहा-धोकर शर्मा जी ने नाश्ता किया और ऑफिस जाते समय पत्नी ने लंच बॉक्स के साथ फिक्स्ड डिपॉजिट की किताब देते हुए एक खामोश मुस्कान दी।
धीमे – धीमे कदमों से शर्मा जी बैंक की तरफ चल दिये और पत्नी को रिटायरमेंट के बाद भारत भ्रमण पर लेकर जाने वाले सपने को टूटा से महसूस कर रहे थे।
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी