देख कर हाल मौसम का आँख में नमी सी है। 
तपती धरती घटता धीरज देख कर आँख में नमी सी है।। 
प्यासे पौधे, पक्षी, राही देख कर  आँख में नमी सी है। 
रोज रोज बढ़ते अपराध देख कर आँख में नमी सी है।। 
बहकता यौवन सिसकता  बचपन देखकर आँख में नमी सी है। 
धधकता दावानल रोती मानवता देखकर आँख़ में नमी सी है।। 
लगाते पेड़ बिखरती हरियाली देखकर  आँख में नमी सी है। 
आशा है विभोर धरा कितनी  सहनशील देखकर आँख में नमी सी है।। 
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉक्टर आशा श्रीवास्तव जबलपुर
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