पंचतत्व से ही निर्मित हुआ
पंचतत्व में ही विलीन हो जायेगा
ना कुछ लेकर आया है इंसान
ना कुछ लेकर जायेगा ।।
फिर कैसा अहम कैसी ईर्ष्या
कैसी है ये मानव की भूल
ना समझ सका ये कभी इंसान
ना ही समझ कभी पाएगा ।।
खुद होकर भी नश्वर शरीर
इस नश्वर से संसार में
अपने अहम के साथ ही
दुनियां से विदा हो जाएगा ।।
जिस सुकून की खातिर
जीवन भर करता रहा जतन
उस सुकून को भी शायद
कभी जान नहीं पाएगा ।।
इस भाग दौड़ के चक्कर में
जब थक कर चूर हो जाएगा
तब सोचेगा थोड़ा रुककर तो
बस यही समझ में आएगा ।।
पंचतत्व से ही निर्मित हुआ
पंचतत्व में ही विलीन हो जायेगा
ना कुछ लेकर आया है इंसान
ना कुछ लेकर जायेगा ।।
कविता गौतम…✍️