खुदा की बन वो परछाई आयी
धरती पर जो नारी कहलायी
कभी मां की ममता तो कभी बहन का प्यार
लेकर आई वो खुशियों का भंडार।।

जन्म दायिनी जननी बनके, तारा जिसने इस जग को
अपनी भूख भी न्योछावर करदे, बच्चे की भूख मिटाने को
मोल क्या इनका कोई चुकाएं
परमात्मा भी जिनके आगे सर को झुकाएं।।

शक्ति है,वरदानी है हर घर की वो कहानी है
प्रेम की मूरत , प्रतिष्ठा है , निष्छल सा स्वभाव भी है
तन पर खुद के वस्त्र ना रहे ,पर सबका ध्यान वो रखती है
छोड़ अपनी ख्वाहिशों को, सब रंग में वो यूं ढलती है ।।

शब्द कहां उसकी व्याख्या को,हर शब्द भी निशब्द हो जाती है
उंगली जो उठें चरित्र पर उसके ,बिना उफ्फ किए ही रह जाती है
ना खुद की सोचती है कभी ,अपनों में ही वो रम जाती है
जीवन देती जिसको दुध पिलाके,उसका विष भी पी जाती है।।

सम्मान भी है, अभिमान भी है, हो अपमान तो वो तुफान भी है।
रातें जिसकी निंद गंवाए, लोड़ी सुन बच्चे सो जाए
हृदय जिसकी बस आशीष ही दे,बदले में चाहे लाख दुत्कार मिलें
जो गिरे एक भी आंसू इसकी , उसमें भी दुआ बरस जाती है।।

और क्या लिखूं उस व्यक्तित्व पर मैं, शब्द भी मेरे साथ नहीं ,
देती हूं कलम को विराम मैं,अब अल्फाज़ भी मेरे पास नहीं
तुझे सत सत नमन कर अब बंद करूं ये कहानी मैं
ये नारी आजीवन तेरी आभारी मैं।।

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प्रीति वर्मा

By प्रीति वर्मा

🍂The only place where ur dreams become impossible is in ur own thinking . believe urself nd achieve ur goal.....🍂

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