मेरा हर ग़म अलविदा कह गया
अनजाना सा राही जब साथ चल दिया
मौसमों में भी रंग भर गया
बेमौसम जब वो बरसात प्रेम की कर गया ।
आईं मंजिल तो रुकने से मना कर गया
रास्तों में ही है मंजिल का मजा कह गया
चली जाती साथ उसके गर दुनियां का खौफ न होता
वो तो मेरे ही पास खुद को छोड़ दूर निकल गया
जाते हुए साल की भांति काश
बदल जाए यह बेनूर से दिन आस जगा गया
थोड़ा थोड़ा मुझमें वो जाने कब समा गया
थोड़ा और नजदीक आता तो बिखर जाती
शायद इस लिए दूर से मुस्कुरा कर चला गया
© रेणु सिंह ” राधे ” ✍️
कोटा राजस्थान