सन इक्कीस जी आज,
तुम्हें विदा हम करते हैं।
अलविदा इक्कीस जी आज,
तुम्हें विदा हम करते हैं।
अब तुम न आओगे पास,
तुम्हें विदा हम करते हैं।
जब तुम आये पहली बार,
स्वागत किया हमने अपार।
नाचे गाये खुशी मनाएं,
केक मिठाई खाये खिलाएं।
लेकर मन में नई आस,
तेरा स्वागत हम करते हैं।
उम्मीद बंधी थी आओगे तुम,
जग में कुछ खुश हाली लेकर।
पर पड़े तुम सन बीस से भारी,
जा रहे हो बहुत पीड़ा देकर।
कितने दुख पाए सबने,
जिसे हम अबतक सहते हैं।
करते रहे काम तुम अपना,
जरा दया न दिखलाई।
क्रूर काल कितनों को खाया,
तुमको दया नहीं आई।
खड़े विवश से देख रहे सब,
गिला तुमसे हम करते हैं।
कितनों के संजोए सपने,
पल में तुमने चूर किया।
रोजी रोटी के लाले पड़ गए,
भूखों मरने पर मजबूर किया।
मिली थोड़ी सी राहत थी पर,
अब ओमीक्रोन से डरते हैं।
जाओ तुम्हें विदा करते हैं,
तेरी इसमें गलती भी क्या।
सहना पड़ता है सबको
जितना विधि ने लिखा हुआ।
लेकर जाओ अच्छी यादें
दुआ हम दिल से करते हैं।
सन बाइस से कह देना,
खुश होकर वह आएगा।
बाँटेगा ख़ुशियाँ सभी को,
सबको सुखी बनाएगा।
जी भर उसके साथ जियेंगे,
वादा हम तुमसे करते हैं।
स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’