“करवा चौथ”

शरद पूर्णिमा-चाँद चला,
लेकर आया करवा चौथ,
करें सुहागिने निर्जला उपवास,
दिन भर पति के आयु की,
प्रभु से करती विनम्र याचना।
सांझ हुई और सब सुहागिने सजधज कर सोलह श्रृंगार ,
पूजा-थाल करवा लेकर,
छम छम पायल बाजे ,
चलीं चाँद के द्वार,
कहें कहानी करवा की,
पूजन कर ,करवा के मुख से,
चाँद को अर्घ्य देतीं जलधार मेें ,
आरती कर पति के चरण छूतीं,
पति के हाँथों ले निवाला,
तोड़ें दिन भर का उपवास।  साथी के संग-संग जीने की,
सुख-सौभाग्य अखण्ड सुहाग की,
मन में होती मीठी आस।

रचनाकार  – सुषमा श्रीवास्तव,मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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