मत कर इंसा , तू इतना अभिमान
सत्यता कुछ और है ,इसे तू पहचान ।।
मानवजन्म मिला है ,ईश्वर की कृपा से
अंहकार में क्यूं लीन रहे, स्वयं की मूर्खता से ।।
इस जीवन में जो हमे ,भौतिक सुख मिला
रह जाता सिर्फ़ ढेर , जैसे हो रेत का टीला ।।
निस्वार्थ सेवा ,कर्म,त्याग व कुशल व्यवहार
वास्तव में जीवन का है, यह अनमोल उपहार ।।
खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ ही है जाना
कर्मों का पिटारा ही ,जिंदगी का है खजाना ।।
सेवा, प्रेम, प्रभुभक्ति से जीवनसुख है पाना
निभाकर स्वयं के कर्तव्य ,भवसागर तर है जाना
मत कर इंसा , तू इतना अभिमान
सत्यता कुछ और है, इसे तू पहचान ।।
✍️मनीषा भुआर्य ठाकुर (कर्नाटक)