एक नारी बेचारी,
पतियों ने जुए में हारी,
खींच दिया वस्त्र किसी ने,
खींचे दिए केश,
सौभाग्यवती उस नारी का,
यह था अमंगल वेश,
उसे शर्त पड़ी थी भारी,
वह अबला थी बेचारी,
जब कोई न दिखा सहारा,
पतियों को नतमस्तक पाया,
तब प्रभु को टेर लगाई,
जब थी बहुत अकुलाई,
ऐन समय पर आकर,
अस्मिता उसकी बचाई,
वो द्रुपद सुता पांचाली,
क्षण भर को न घबराई,
जब कृष्ण हुए सहाय,
तो मन मे डर क्यों आये,
वो इतना वस्त्र बढ़ाये,
सम्मान नहीं खो पाए,
थक हार दुशासन हारा,
भूतल पर गिरा बेचारा,
आज शक्ति थी जीती,
शक्ति की भक्ति जीती,
अन्याय सदा ही हारा,
जब प्रभु ने दिया सहारा,
टूट गया सारा कौरवों का अभिमान।
जीत गई भक्ति प्रेम और ज्ञान।
इंदु विवेक उदैनियाँ
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