मिट जाता है वंश वो जो करता दूसरों का अपमान
नहीं माने जो इस विश्व में अनमोल प्राणियों की जान
दुर्योधन के साथ थी कृष्ण की नारायणी सेना विशाल
परास्त हो गया ना पाया धन, वैभव, यश और मान।
यूँ तो लंकेश्वर ने बनाया राजाओं में था उच्च स्थान
ज्ञानी वेदों का, शास्त्रों से ग्रहीत किया अपार ज्ञान
महानता धरी रह गयी शैतान का धरा रूप विकराल
अहंकार के मद में चूर समझ लिया स्वयं को महान।
मांगे से मिलता नहीं यहां कभी किसी को सम्मान
आज जो तेरा है कल बनेगा किसी और की शान
सुविचारों से अपने जो जीत ले दुनिया का ताज
श्रेष्ठ जग में वहीं जिसे नहीं तनिक भी “अभिमान”।
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’✍️