मैं टूटता रहा किश्तों में
इसी उम्मीद में बरसों
कि अब देखोगे….
अब देखोगे..।
तुमने देखा ही नहीं
देखना मेरा….
और मैं मुंतज़िर ही रहा
कि अब देखोगे….
अब देखोगे..।
धुन्ध सी छा गयी
इंतज़ार करते करते
इन आँखों मे..
पर उम्मीद अभी भी
बाकी है
कि अब देखोगे…
अब देखोगे..।
जिस्म है बस सांसों के
ठहरने का ठिकाना,
दिल आज भी
सिर्फ इसलिए धड़कता है
कि तुम अब देखोगे…
अब देखोगे..।
डॉ0 अजीत खरे
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