अब तो मुझे यहाँ, सभी चाहते हैं।
कल तो मेरे साथ, कोई नहीं था।।
करते हैं अब तो , सभी प्यार मुझसे।
कल तो मेरा दोस्त, कोई नहीं था।।
अब तो मुझे यहाँ—————–।।
नफरत थी सबको, मेरी इस सूरत से।
मिलाता नहीं था, नजर कोई मुझसे।।
मेरे सितारें अब है, बुलंद जो।
मिलाते हैं अब हाथ, सब लोग मुझसे।।
अब तो मुझे यहाँ—————–।।
बताते थे अपनी मजबूरी , कल सब।
मदद मांगता था, उनसे मैं जब।।
घर मैंने अब जो, बना लिया है।
बुलाते हैं महफ़िल में, मुझको अब सब।।
अब तो मुझे यहाँ—————–।।
क्यों भूल गए थे, रिश्ता वो कल को।
आये नहीं मुझसे, मिलने क्यों कल को।।
मैं तो उन्हीं के ,घर का था हिस्सा।
रुलाया उन्होंने , क्यों मेरे दिल को।।
अब तो मुझे यहाँ——————।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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