अब जीना मुझे
आत्म सम्मान के साथ
बोझ बन नही जीना मुझे
पैरों पर अपने खड़े हो
जीना मुझे खुद्दारी संग
पैदा होने से बड़े तक
नियम पिता के थे
क्योंकि घर है उनका
रहना है मुझे उनके
नियमों में बंधकर
पति के घर आकर
चलना केसे है बताया
घर था उनका
उनकी मर्जी से रहना
अब घर बेटे का है
अब मर्जी उसकी है
अपना पूरा जीवन
तन मन जिन पर वारा
सालों साल सब करके भी
मैं हूँ बेकार बेदाम
मुझे कुछ आता नहीं
दुनिया दारी से अनजान
घर के किसी फैसलों में
मेरी राय का कोई मायने नहीं
मेरा प्यार त्याग और समर्पण
सब था कर्तव्य मेरा
जिंदगी अपनी सारी बिताई
सिर्फ रिश्ते निभाने मे
अपने आप से कोई
रिश्ता जोड़ ही न पाई
अपनी ही नजर मे
और नही गिरना मुझे
अपनो से कोई शिकवा
शिकायत नही है
पर जीना अब
सर उठा कर है
क्योकि बात अब मेरे
आत्म सम्मान की है।।