न जाने ज़िंदगी ने कौन से मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है,
मुस्कुराहट भी बड़ी मुश्किल से निकलती है,
कोई भी आ के कुछ भी सुना कर चला जाता है,
फिर भी जुबां चुप रहती है,
बेबसी ने दिल को इस तरह घेर लिया है,
की सिर्फ आंखों में पानी के अलावा कुछ और न बचा है,
बुरा भला से जैसे रिश्ता ही टूट गया है,
बिन बातों में भी अश्क बह जाते हैं,
यूं कहो की जीते जी हम मर चुके हैं,
चारो तरफ भीड़ है,फिर भी हम अकेले पड़ गए हैं,
खुशी ने रूठ कर मुंह मोड़ लिया है,
उसको समझाने जाओ तो दो चार शर्त वो भी रखती है,
हर वक्त अब चुप रहती हूं,
खुद ही खुद में जवाब ढूंढती हूं,
पर घूम फिर कर फिर से वही सवाल पे अटक जाती हूं,
दिल करता है ,सबके मुंह पे जवाब दे दूं,
पर अब बस चुप रहती हूं,
सामने से आनेवाली हर बात को  समझने में अब वक्त लगता है,
अपने भी गैरों जैसे बरताब करते हैं,
पता नहीं ज़िंदगी इतनी नाराज़ क्यों है,
हम हंसना तो चाहते हैं,पर रो पड़ते हैं,
पता नहीं ज़िंदगी ने कौनसे  मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है,
आंसू से इतना प्यार हो गया है कि,
हंसी से नफ़रत होने लगी है….
© ज्योतिजयीता महापात्र
ओडिशा
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