मिल रहा था मुझे नारी शक्ति सम्मान
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच
हो रहा था मेरा गुणगान।
समाज में मेरी उपलब्धियों को
बताया जा रहा था।
मुझे समाज की नारी शक्ति
कहा जा रहा था।
प्रेरणा हूँ में समाज की
समाज को आगे बढ़ाती हूँ।
नारियों को साथ लेकर,
हौंसला उनका बढ़ाती हूँ।
ऐसी कई बातों को,
संचालक के द्वारा कहा जा रहा था 
और सबके द्वारा मुझे बहुत
शक्तिशाली समझा जा रहा था।
मैं यह सब सुनकर मन ही मन
कसमसा रही थी।
सम्मान ग्रहण करते हुए,
मेरे अधरों पर खोखली,
मुस्कान आ रही थी।
जो मेरी उपलब्धियों पर
ताली बजा रहे थे।
मैं स्वयं को उनसे कही ज्यादा,
कमजोर पा रही थी।
शक्तिशाली समझ जो मुझे
रणचंडी का रूप समझ रहे थे।
गत शर्वरी ही तो कांत की तृष्णाओं की
बलि चढ़ रही थी।
हर काम में नुस्ख,तानों को सुन-सुन कर,
मैं यहाँ तालियां बटोर रही थी।
कुछ दिनों पहले ही तो,
घूँघट संग, जले हाथ को देख रही थी।
अपने ही सामने अपनी फटी कविताओं को,
देख रो रही थी।
ना प्रतिकार कर रही थी, ना ही बोल रही थी।
और यहाँ मैं भ्रूण हत्या पर,
जोरदार भाषण दे रही थी……
जो खुद अपनी कोख को चार बार
उजाड़ चुकी थी।
इसीलिए सम्मान लेते वक्त मैं
स्वयं को अपमानित महसूस
कर रही थी…….।
गरिमा राकेश’गर्विता’गौत्तम
कोटा राजस्थान
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