आज का दिन मेरा है।
किसी टैब के ब्लैंक पेज की तरह।
हम जो चाहें लिख सकते…
जो चाहे बना सकते…
नदियां,फूल,पहाङ,कलाकृतियां।
सहेज सकते बनाकर स्मृतियां!
या ख़ाली छोङ सकते…
जिस पर कोई अन्य उकेर जाएगा
अपनी मनोवृतियां।
फिर क्यूं न पकङी जाए,
हाथों में कूचियां,
और खींचीं जाए,
आङी तिरछी लकीरें,
और भरा जाए कुछ रंग अपने रंग का!
कुछ रंग अपनी आत्मा के परछाई का।
कुछ रंग हिरणों के कुलाच का..
कुछ रंग स्पंदन का..
रीते हुए दीवारों पर
बना कर स्मार्कें,
रखी जाए कुछ पंखुड़ियां 🌺⚘🌼
राग रंग का !
कुछ आकृतियां गढ़ी जाऐं,
मन के टूटे हुए टुकड़ों से!
कुछ रंग आंधियों का,
कुछ स्याह पङ गए,
मन की दीवारों पे,
मिला कर स्वर्ण रंग,
बनाया जाए हरा रंग !
जैसे कृष्ण मिले राधिका संग,
यमुना किनारे शरद पूर्णिमा
में रचा रासरंग।
हो रहे निमग्न,,,मदिर -मदिर तन और मन।
जैसे मिल रहे ताल- छंद,
और बज उठे ह्रदय तरंग
कर कोई नवीन सृजन।
चलो भरें कुछ नये रंग
और पूर्ण हो जाऐं राधिका संग!
भर अपने जीवन में राग रंग।
✍डॉ पल्लवी कुमारी”पाम “