अपना शहर छोड़ कर
तेरे साथ चलें है ए ज़िंदगी
अब फाके मिले राहों में
या तू दे दावतें ए ज़िंदगी
वो बस्ता , वो पेन ,वो कागज़
तब बोझ लगता था ए ज़िंदगी
अब रोटी , कपड़ा और मकान
न जाने कितने ओर बोझ ए ज़िंदगी
रुकती , हाफती, तड़पती सांसे
तब जीए तो क्यू कर ए ज़िंदगी
एक के बाद एक तोहमदे
न जाने कितने बवाल तेरे ए ज़िंदगी
मां मेरी थी तो बलाए लेती
तब छू भी न पाए तेरे सितम ए ज़िंदगी
अब ख़ुद को कहां कहां से
बचा कर लाए बेखौफ बता ए ज़िंदगी
© रेणु सिंह राधे ✍️
कोटा राजस्थान