चूड़ी बोले कंगना डोले 
मनवा क्यों खाए हिचकोले 
हार सिंगार कुछ ना सुहाए 
दिल में भड़क रहे हैं शोले 
तुम बिन सजन मैं कुछ नहीं 
ये ठंडी पवन क्या कह रही 
रिमझिम सावन तड़पा रहा 
काश कि तुम होते यहीं कहीं 
बिजली बैरन अगन लगाए 
कारे कारे बदरा मुझे डराए 
मौसम बेईमान मन ललचाए 
आंचल उड़ उड़ तुझे बुलाए 
सब सखियों के कंत यहीं हैं 
एक मैं ही विरहिन घूम रही 
सावन के संग अंखियां बरसे 
अंसुअन के मोती चूम रही 
तुम बिन सूनी सेज पडी 
राह तकूं मैं द्वार खड़ी 
दिन गुजरे ना रैन कटे 
दुख की बदली नाही छंटे 
दो रोटी में सबर कर ले 
कुछ तो मेरी खबर ले ले 
विरह में यौवन गुजर ना जाये 
ना जाने हाय, कब तू आये 
कहीं सौतन तो नहीं कर ली 
बैंया किसी की तो नहीं धर ली 
आजा बैरी , उड़कर आजा 
मोहिनी मूरत मुझे दिखा जा 
चाहे फिर वापस चले जाना 
सास ननद के सह लूंगी ताना 
ऐ री पवन , पैगाम ले जाना 
संग ही उनको लेकर आना 
हरिशंकर गोयल “हरि” 
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