उड़ने दो मैं उड़ने आया,
अपना पंख फैलाने आया…
चट्टानों को पार करूँ मैं,
अपना इतिहास बनाने आया…
लांध लूंगा ये ज़मी की राहें,
बिस्तर अपना जमाने आया…
रुबरू होने की अब है बारी,
अपना नाम बनाने आया…
अब उड़ने दे आसमां में,
अपना कर्तव्य दिखाने आया…
भेदूंगा हर आँकड़े को,
अपना रंग ज़माने आया…
बात बिगरती है दागों से,
कलंकित दाग मिटाने आया…
रूप बनेगा फिर पौरुष का,
सबमें प्यार बढ़ाने आया…
✍️विकास कुमार लाभ
मधुबनी(बिहार)