धरती से सोना उगाता है
अन्नदाता वो कहलाता है
गर्मी, सर्दी, बारिश में भी
न अपनी परवाह करता है
यूं हीं तो नहीं वो
अन्नदाता कहलाता है…
दुनियां का पेट पालने को
ईश्वर से वरदान वो लाता है
फिर भी लोगों की  नज़रों में
न कोई सम्मान वो पाता है…
भूख मिटाने वाला सबकी
क्यों बेचारा कहलाता है
बेचारा ही लेता है जन्म 
बेचारा ही मर जाता है…
क्यों उसकी मजबूरी को
कोई समझ न पाता है
क्यों उसकी मेहनत का मोल
नहीं उसको कभी मिल पाता है
क्यों लड़ते लड़ते हालातों से 
दुनियां से विदा हो जाता है…
धरती से सोना उगाता है
अन्नदाता वो कहलाता है
अन्नदाता कहलाने की वो
कीमत बड़ी चुकाता है
यूं हीं तो नहीं वो
अन्नदाता कहलाता है…
कविता गौतम…✍️
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