कुदरत के बाद आता है ज़ुबांपर जिसका नाम ,
हेअन्नदाता हे किसान हे अन्नदाता हे किसान।
सुबह सवेरे खेतों को जाता
जीवन मिट्टी में मिल जाता,
तब जाकर है अन्न उपजाता
पेट भर फिर भी ना खा पाता ।
कैसा भारत देश महान ?
हे अन्नदाता हे किसान।
हिसाब महाजन का गिन ना पाता
ब्याज जीवन भर चुकाता,
फिर भी मूल चुका ना पाता।
कैसा गणित मेरे भगवान ?
हे अन्नदाता हे किसान।
करोना काल ने और सताया
ना बोया ना काट पाया,
क्या है भविष्य जानना पाया
कैसे चलेगा कुल जहान?
हेअन्नदाता हे किसान।
सोई सरकार अब तो जागो
कुर्सी का तुम मोह त्यागो,
मिट्टी की तरफ अब तुम भागो
तभी बनेगा देश कृषि प्रधान।
हे अन्नदाता हे किसान।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा