नरेश :- पापा अब इस विनय को आप ही समझा सकते हैं.. हर बात पर हर किसी को देखकर उसका मखौल उड़ाना सही नहीं हैं..।
कैलाशनाथ :- हां बेटा मैं खुद भी बहुत दिनों से देख रहा हूँ..। लेकिन बेटा उसे डांटकर या मारकर समझाया नही जा सकता.. अभी वो बच्चा हैं..। तुम परेशान मत हो मैं अपने तरीके से बात करता हूँ उससे..।
उसी शाम कैलाशनाथ रोज की तरह बगीचे मे टहलने जा रहे थे आज उन्होंने अपने पोते विनय को भी आइसक्रीम की लालच देकर तैयार कर लिया अपने साथ चलने के लिए..।
कैलाशनाथ और विनय रास्ते से गुजर रहें थे तो उन्होंने नजदीक ही मकान बनाने का काम चल रहा था.. विनय तुरंत बोला :- दादाजी… कितना छोटा छोटा काम करते हैं ये सब लोग..इसमें से कितना कमा लेंगे ये लोग..।
कैलाशनाथ :- बेटा मकान बनाने का काम बहुत मेहनत का काम हैं.. काम काम होता है छोटा बड़ा नहीं होता..।
विनय :- मेहनत.. हम्म्… इसमें कैसी मेहनत.. ईंट पर ईंट रखने में कैसी मेहनत.. ये मजदूर लोग पागल बनाते हैं सबको..।
कैलाशनाथ मुस्कुराए और आगे चल दिए..। थोड़ी देर में वो बगीचे मे पहुंचे..।
बगीचे के बाहर दरवाजे पर गार्ड ने कैलाशनाथ को सलाम किया..।
अंदर गए तो बगीचे का माली पानी दे रहा था..।
एक बैंच पर कैलाशनाथ और विनय बैठे..।
विनय यहाँ वहाँ नजर फेरकर बोला:- दादाजी ये गार्ड और माली तो हराम का पैसा लेते हैं.. .। आने जाने वालों को बिना मतलब सलाम करने का क्या मतलब.. बैठी बिठाई कमाई हैं इनकी… ऐसे लोगों से मेहनत तो होती नहीं हैं..। पौधों को पानी देना… ये भी कोई काम हैं… पांच मिनट लगते हैं पानी देने में..। ये गरीब लोग सबको लूटते रहते हैं..।
कैलाशनाथ मुस्कुरा कर उसकी बातें सुन रहे थे..। कुछ देर बाद वो घर वापस आ गए..।
अगले दिन… कैलाशनाथ कुछ ईंटें घर ले आए..। विनय के उठने पर उन्होंने विनय को अपने पास बुलाया और कहा.. :- अरे विनय बेटा आओ आज हम दोनों एक खेल खेलते हैं..। अपने घर के पीछे जो जमीन खाली पड़ी हैं ना चलो हम दोनों मिलकर वहाँ छोटा सा स्टोर रुम बना देते हैं.. ये ईंटे में यहाँ तक तो ले आया हूँ.. तुम पीछे तक ले चलो मैं थोड़ी देर में आया..।
विनय :- इसमें कौनसी बड़ी बात हैं दादा जी अभी यूँ पहूँचा देता हूँ..।
विनय जोश जोश में एक साथ चार पांच ईंटे लेकर पीछे की तरफ गया… आधे रास्ते तक ही उसकी सांस फूलने लगी..। जैसे तैसे वो पीछे ईंटे रखकर वापस घर की ओर आया…। लेकिन दूसरा चक्कर लगाने की उसमें बिल्कुल हिम्मत नहीं थीं..।
वो उन ईंटों पर बैठ गया..।
थोड़ी देर में कैलाशनाथ बाहर आए और विनय को देखकर बोले.. :- अरे बैठ क्यूँ गए.. चलो जल्दी करो..। अभी तो बहुत काम हैं..। अभी तो तुम्हें अपना बगीचा भी साफ़ करना हैं… और फिर रात को ईंटों की रखवाली भी तो करनी हैं..।
विनय आश्चर्य से :- ईंटों की रखवाली.. !
कैलाशनाथ :- हाँ… इतनी ईंटों से थोड़ी बनेगा स्टोर रुम….शाम को दूसरी भी आएंगी… रात को उनका ध्यान भी तो रखना हैं बेटा..।
विनय :- दादा जी…. ये सब मुझसे नहीं होगा… आप जाकर किसी मजदूर को भूला लो..। मैं तो चला नाश्ता करने..।
कैलाशनाथ थोड़ा गुस्से से:- ऐसे कैसे नहीं होगा.. इसमें कौनसी मेहनत हैं… चार ईंटे यहाँ से उठाकर वहाँ लगानी हैं..। पौधों की कांट छांट करके पानी देना हैं.. इतना काम भी तुझसे नहीं होगा..।
विनय :- दादा जी.. आप उठाकर दिखाओ ये ईंटे तब पता चलेगा… कितनी मेहनत लगतीं हैं..।
कैलाशनाथ मुस्कुराते हुए :- अच्छा… तो तू मानता हैं ना ये सब मेहनत का काम हैं..।
विनय :- हां तो दादाजी.. मेहनत तो लगतीं हैं ना..।
कैलाशनाथ ने विनय को अपने पास बुलाकर बिठाया और कहा:- ये ही तो मैं सुनना चाहता था बेटा..। हर काम एक गहरे अनुभव और मेहनत से ही मुमकिन होता हैं..। एक मजदूर सिर्फ यूँ ही ईंट पर ईंट रखकर घर नहीं बना देता… उसका सालों का तजुर्बा.. अनुभव… और कड़ी मेहनत से घर बनता हैं..। काम चाहें माली का हो या चौकीदार का… बस चलाने वाला ड्राइवर हो या हवाई जहाज चलाने वाला पायलट… कचरा बिनने वाले कबाड़ी का हो या हीरे के व्यापारी का.. सब कुछ अनुभव और मेहनत से हासिल किया जाता हैं..।
विनय :+ मैं समझ गया दादा जी…। मैं माफी मांगता हूँ आप सभी से… और उन सभी से भी जिनके लिए मैंने गलत बोला था..।
बिना अनुभव के आप सिर्फ लोगों का मखौल बना सकते हैं…। उंगली उठा सकते हैं..। बाकी हर काम को करने के लिए एक अनुभव की आवश्यकता होती हैं..। जब तक आप गिरोगे नहीं… आप संभल भी नहीं सकते..। संभलने के लिए गिरना भी जरूरी हैं..और गिरकर संभलने वाले ही मंजिल को पाते हैं..।
जय श्री राम…।