पापा- पापा एक अंकल आए थे लिफाफा दे गए हैं कह रहे थे इस बार स्वतंत्रता दिवस पर सरकार अग्नि वीरों को सम्मानित करेगी ।क्या आप अग्निवीर हैं ?यह क्या होते हैं ?7 वर्ष के बेटे के इस सवाल पर राकेश अतीत में खो गया ।12वीं में 85% अंक हासिल करके जब वह कॉलेज पहुंचा तब नए नए मित्र, नया माहौल ,नया खुला पन पचा नहीं पाया और बुरी संगति में पडकर आवारा हो गया ,घरवालों के बस में ना रहा ,नशे का आदि भी हो गया और फिर पैसों के लिए नित नई अपराध करने लगा ।पिता का साया सिर से उठ गया ,मां की परेशानियों से उसे कोई सरोकार न रहा पर मां तो आखिर मां थी येन केन प्रकारेण उसे अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीर बनाने का निर्णय लिया। घर से बहुत दूर ट्रेनिंग के लिए भेज दिया अफसरों को कह दिया यह कभी लौट ना पाए विशेष ध्यान रखियेगा। फिर क्या था कड़े प्रशिक्षण के बीच राकेश का विशेष ध्यान रखा गया ।जब वहां से छूटने के सारे प्रयास असफल हो गए तो सोचा जो कर रहा हूं मन से ही कर लूं। धीरे-धीरे वहां के अनुशासन और वातावरण ने उसे पक्का राष्ट्रभक्त बना दिया ।4 साल देश को सेवाएं देने के बाद जब वापस आया तो खाते में एक सम्मानित राशि ,स्वाभिमान और देशभक्ति का गुरूर साथ लेकर आया ।मान सम्मान मिला ,मां और परिवार वालों की आंखों में प्रेम ओर गर्व दिखाई दिया ।अग्निवीर के प्रमाण पत्र का लाभ मिला दूसरी नौकरी मिल गई। शादी हो गई जिंदगी सुख मय हो गई घर समाज और पूरे जिले में समारोह में सम्मान मिलने लगा ।अग्निपथ पर चलना आसान तो नहीं था पर एक बार चल पड़े तो सारी जिंदगी राहों में फूल ही फूल बिछ गए ।पापा पापा राकेश की तंद्रा टूटी और वह बेटे को अग्निवीर के विषय में समझाने का प्रयास करने लगा । 
          प्रीति मनीष दुबे 
           मण्डला मप्र
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