“अंदर ही अंदर घुटन सी हो रही थी उसे! मानो जैसे उससे किसी ने उसकी बहुमुल्य वस्तु छीन ली हो। न चाहकर भी उसके आँखों से आँसुओ की धारा बहने लगी। वह अपने किस्मत को हर बार की तरह फिर से कोसने लगा। “अच्छा होता अगर मेरा जन्म ही  न हुआ होता, अच्छा होता अगर बाबूजी के जगह मेरी मृत्यु हो जाती । न जाने कितने वादे किये थे अपनी मां से अब कैसे करूँगा उसे पुरा? कैसे करूँगा अपनी मातृभूमि की रक्षा? काश मेरी अधूरी ख्वाइशें की तरह मेरी जिंदगी भी अधूरी रह जाती। हर वक्त आजमाती है ये जिंदगी, न जाने क्यों इतना तड़पाती है ये जिंदगी। अगर इतना ही बुरा हूँ तो ऐ खुदा मुझे बुला क्यों नहीं लेतें, मेरे अस्तित्व को मिटा क्यों नहीं देते। हार चुका हूँ अपनी जिंदगी से थक गया हूँ इसे झेलते झेलते ,अब जीने की कोई ख्वाइश नहीं है, मुझे भी मेरे बाबूजी के पास बुला लो।”
 अपने आँखों पर हाथ रखकर अमन रोये जा रहा था । दूर खड़ी उसकी  बेबस,लाचार माँ जो की उसे रोता देख खुद भी रो रही थी। कहे तो क्या कहे अपने बेटे से, उसका सपना तो मानो टूट ही गया था, बचपन से उसने सोच रखा था की मैं तो सैनिक नहीं बन पाई लेकिन अपने बेटे को सैनिक ही बनाऊँगी। महज पांच वर्ष की थी सीमा जब उसके बड़े बाबूजी के बेटे की नौकरी सैनिक में लगी थी। उसे देख सीमा भी सपना देखा करती थी की वह बड़ी होकर सैनिक बनेगी अपने देश की रक्षा करेगी। वह घर में ही अपने बड़े बाबूजी से पढ़ा करती थी, उनका सेवा भी खूब किया करती थी ताकि बड़े बाबूजी उसे अच्छे से पढ़ाएँ। किंतु सीमा की माँ की मृत्यु हो जाने के बाद मानो घर तहस -नहस हो गया । सीमा के बड़े बाबूजी और बाबूजी दोनों अलग हो गयें। घर का सारा काम सीमा और उसकी बहनों पर आ गया। उसकी पढाई भी नहीं होने लगी। उसके बाबूजी ने केवल आठ वर्ष की आयु में उसका विवाह सत्ताइस वर्ष के लड़के से करा दिया। जब सीमा सोलह वर्ष की हुई तो वर्जपात होने की वजह से उसके पति की मृत्यु हो गई। उस समय अमन अपनी माँ के कोख में ही पल रहा था। एक गाय थी जिसका दूध बेचकर सीमा अपना और अपने बेटे का भरण -पोषण करती थी। 
सीमा चाहती थी की जो वह नहीं कर पाई व उसका बेटा करें। किंतु खुद को अकेला देखकर सीमा ये ख्वाइशें मन से निकाल चुकी थी। लेकिन जब उसका बेटा केवल चार वर्ष का था और पड़ोस में एक लड़को को सैनिक के कपड़ा पहने हुए जाते देखता है तो वह मचल उठता है और उस लड़के के पास जाकर पूछता है – 
“आप कहाँ जा रहे हो? आपको ये कपड़े किसने दियें? 
“मैं बॉर्डर पर जा रहा हूँ देश की रक्षा के लिए ! मैं एक सैनिक हूँ और मुझे ये कपड़े भारत सरकार से मिला है। ये कपड़े सभी सैनिकों को मिलते हैं”। (निकेत ने मुस्कुराते हुए अमन से कहा) 
अमन दौड़ा दौड़ा आता है और अपनी माँ से कहता है – 
” माँ ये सैनिक कैसे बना जाता? (जानने की इच्छा लिये बड़े ही भोलेपन से अमन ने अपनी माँ से कहा) 
सैनिक! सैनिक बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है । और सिर्फ मेहनत की काफी नहीं होता बेटा! सैनिक बनने के लिए अपने देश से प्रेम करना पड़ता है, अपनी मातृभूमि की रक्षा के खातिर बलिदान देना पड़ता है,अपने परिवार से दूर रहकर  सर्दी, गर्मी, वर्षा, धूप चाहे जैसी भी परिस्तिथि हो हर हाल में देश की रक्षा के लिए तैयार रहना पड़ता है। न जाने कितने त्याग करने पड़ते हैं तब जाकर लोग सैनिक बनते हैं! हर कोई सैनिक नहीं बन पाते! “जो बहादुर होते हैं , जिन्हें अपने देश से प्रेम होता है वही सैनिक बनते हैं”। ये कहते हुए सीमा गाय को चारा देने चली जाती है। 
क्रमशः 
गौरी तिवारी 
भागलपुर, बिहार
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