सीमा इन ख्यालों खोई ही थी की अचानक किसी ने दरवाजा
खटखटाया –
“चाची ओ चाची! अमन है का घर पे, दरवाजा तो खोलो उससे कुछ जरूरी बात करनी है ” (दरवाजा खटखटाते हुए विक्रम ने पूछा)
विक्रम की आवाज सुन सीमा का ध्यान टूटा और वह अपनी आँसुओ को पोछते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
दूसरी तरफ अमन भी अपने आँसुओ को छुपाने के लिये पानी से अपना चेहरा धोने लगा।
जैसे ही सीमा दरवाजा खोलती है विक्रम झट से अंदर आता है और जोर जोर से चिल्लाने लगता है –
“अमन ओ अमन! हमारी सारी मेहनत मिट्टी में मिल गई। जो सपना देखें थे हम सारे सपने अधूरे रह गयें। अरे जब चार साल के लिए ही सैनिक में रहेंगे तो काहे के लिए इतनी मेहनत! और जरा ये सोचो जब हमारे चार साल पूरे हो जायेंगे तो हम क्या करेंगे? दर -दर की ठोकरे खाते फिरेंगे “।
अमन ; तो क्या करें? हम कुछ कर भी तो नहीं सकते हैं।
विक्रम ;कुछ नहीं कर सकते? क्यों नहीं कर सकतें? ये देश हमारा है , हमारे भविष्य का इतना बड़ा फैसला लेने वाले ये नेता होते कौन हैं। आज जो ये जिस कुर्सी पर बैठे हैं और इतने बड़े बड़े फैसले ले रहे हैं, तुम भूल रहे हो हम जनता के बदौलत ही वे उस कुर्सी तक पहुँच पाएं हैं। और तुम कहते हो हम कुछ नहीं कर सकते।
अमन : तो क्या करोगे! सरकार से विनती करोगे की इस फैसले को वापस ले लीजिये । और तुम्हें क्या लगता है, ऐसा करने पर वह मान जायेंगे और इस योजना को बदल देंगे?
विक्रम ; जी नहीं! हम विनती नहीं प्रदर्शन करेंगे, आंदोलन करेंगे, धरने पर बैठेंगे जब तक वह हमारी मांगे पूरी नहीं कर देतें हम शांत नहीं बैठेंगे। हमारी लडाई इस अग्निवीर योजना के खिलाफ है और हम ये लडाई जीतेंगे चाहे हमें कुछ भी करना पड़ जाए।
अमन ; इससे कुछ नहीं होने वाला है विक्रम! वैसे भी चार साल कम थोड़ी होते हैं। हमें तो अपने देश की सेवा करनी है न, चाहे चार साल करें या चार दिन! अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए अवसर तो मिल ही रहा है न।
तभी अचानक प्रशांत भी वहाँ आ जाता है और कहता है –
कल गाँव के सारे लड़के को आंदोलन करने जाना है। सबसे पहले हमें ट्रेनों को निशाना बनाना है। सारे ट्रेनों में आग लगा देना है, हर एक बस स्टैंड पर जा जाकर जितने भी बस, ट्रैक होंगे सबको तोड़ फोड़ करना है। हम भी देखते हैं ये सरकार इस योजना को कैसे वापस नहीं लेती है। कल सुबह आठ बजे सभी रेलवे स्टेशन पर मिलते हैं।( ये कहकर प्रशांत चुप हो जाता है। )
प्रशांत की बातों को सुन अमन हक्का वक्का रह जाता है और उनलोगों से कहता है –
“पागल तो नहीं हो गये हो तुमलोग! हम अपने ही देश की सम्पति को बर्बाद करेंगे। कल तक जिस देश की रक्षा के लिए हम प्राण तक देने को तैयार थे, आज उसी देश को हम ऐसे बर्बाद करेंगे? मैं तो ऐसा बिल्कुल नहीं करूँगा और तुमलोगों को भी ऐसा न करने का ही सलाह दूंगा।
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर, बिहार