प्रजंडता के शिखर पर, हिम नदी बहा रहा …
धधक रही लौ मशाल वो जला रहा …।
नायक ,अग्निवीर का ऋतुराज आव्हान कर रहा ..
बासंतिक, सौंदर्य का वसन पीत हरा- भरा..!
पंछियों का कलरव दिशा को चहका रहा ..
जाति -धर्म से परे बिगुल गुंजन कर रहा..।
देश की माटी का श्रृंगार चंदन नित सजा रहा ..
प्रात: ,तेज़ से तन कुंदन -कुंदन निखर रहा ..!
प्रज्वलित ,लगन का गीत -गीत गा रहा ..
नौनिहाल ,ध्वजा को शौर्य से लहरा रहा..!
घट ले ,नभ से आस की बौछार भिगा रहा..
सर्वोपरि ,देश हित शीर्ष पर रख रहा ..!
ये, अग्निवीर का चक्र अग्निपथ पर चल रहा..
लाखों ,युवकों का कौशल बिंदु चमक रहा ..!
पाताल,धरा,जल ,अग्नि ,वायु अस्त्र का जल जला ..
देश की रक्षा करने का प्रण बना रहा ..!
अम्बर, पर गण सुदूर टिमटिमा रहा …
कर्मयोग, के चक्षुओं से धर्म निभा रहा ..!
काल आया जो बैरी ज्वाला बुझा रहा..
भयभीत बैठ वो अब थर- थर कांप रहा ..!
सौगंध मातृभूमि की प्राणों से निभा रहा..
सुप्त भाग्य की विडंबना को जगा रहा ..!
(✍️स्वरचित काव्य)
दिनांक: ३०/६/२०२२
समय : ३ (शाम)
शहर : लखनऊ 
सुनंदा असवाल
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