अगर शब्दों के भी पंख होते 
जज्बात सारे हवा में ही उड़ते
दिल के अरमान शब्द बनकर
किसी के दिल पे सीधे लैंड करते 
ना चिठ्ठी पत्री की जरूरत होती 
ना एस एम एस होता ना मेल होती 
ना किसी की नींदे हराम होती 
और ना ही किसी को जेल होती 
मगर तब एक बड़ी मुश्किल हो जाती 
सबकी ख्वाहिशें सार्वजनिक हो जाती 
अगर गलती से प्रेमिका के लिये लिखे शब्द 
पत्नी के पास पहुंच जाते तो लेने के देने पड़ जाते 
तब लड़कियां बड़ी कन्फ्यूज हो जाती 
उनके घरों पर शब्दों की लाइन लग जाती 
जिन आशिकों के शब्दों में “जान” होती 
सारी सुंदरियां बस उसकी मेहमान होती 
फिर ऐसा होता कि हसीनाओं को भी 
इशारों में बात करने की जरूरत नहीं होती 
वे भी कुछ कुछ शब्द हवा में उड़ा देती 
अपने प्यार का ऐलान खुलेआम कर देती 
फिर आंख के इशारे का क्या होता 
और लौंग के लश्कर का क्या होता 
वो “हाथ का झाला” कहीं पड़ा सड़ रहा होता
तो “आंचल का इशारा” कहीं सुबक रहा होता 
तब आसमान में रेस्टोरेंट खुल जाते 
शब्दों के लिए “रेस्ट रूम” बन जाते 
फिर शब्दों में आपस में ही प्यार हो जाता 
और वे भी शादी करके अपना घर बसा लेते 

हरिशंकर गोयल “हरि” 

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